दर्द का रास्ता छोड़ कर मंजिलों से हमने कहा थोडा दूर चली जाये, रास्ता कम लगता है हमारे पैरों को चलने के लिए...

Sunday, November 22, 2009

मन कहता है .........


फोटो एडिटेड -ज्योति
ऐसे तो नही थे हम जैसे रहने लगे है

तन्हाई से थी दोस्ती हमारी अब उससे ही डरने लगे,

रुकना नही चाहते थे किसी के लिए ,

बस यूँ ही रुक कर किसी का इंतज़ार करने लगे ,

छूना चाहते है आसमान पर किसी की चाहत की में डूबने लगे,

हमको पता है इन रास्तो की नही है मंजिल,

सच्चाई को रास्ते में छोड़ कर आगे बढ़ने लगे,

यादों के कारवां को तकिया बनाकर सोने लगे,

शायद तुम कभी न समझ पाओगे हमे,

हम तो बस तेरे रंग में रंगने लगे,

दुनिया की सारी खुशिया तेरे लिए ,

हम तो अब तेरे संग जीने लगे।


Wednesday, November 18, 2009

तुम हो मेरे लिए.....


फोटो -ज्योति वर्मा (गोमती नदी )
मेरे मन की पवित्रता है तुम्हारे लिए,

मेरी आत्मा की शुद्धता है तुम्हारे लिए,

कैसे कहू की मेरा समर्पण है तुम्हारे लिए,

ज़िन्दगी को संवारना है तुम्हारे लिए ,

मेरी आँखो में असीम प्रेम है तुम्हारे लिए,

तुम कहते हो की हम दोनों नदी के दो किनारे की तरह है ,

जो प्रेम रूपी अद्भुत जल से आपस में मिले हुए साथ चल रहे है,

हमारे बीच कोई दूरी नही है हमारा प्रेम हमारे बीच बह रहा है,

कितने पवित्र हो तुम, मेरा विश्वास हो तुम,

मेरी पूरी ज़िन्दगी है तुम्हारे लिए ।

Wednesday, November 4, 2009

मेरा साया

दुनिया एक समुन्दर है तैरना आता नही हमको,


फोटो -सतंजय वर्मा





हमको डर है की हम खो देंगे ख़ुद को गहरीं समुन्दर की लहरों में,


बड़ा खारा है पानी इसका मन की परतों पर घर न बसा ले कहीं ,





हमको डर है कि कहीं छू न ले हमे ये नमकीन पानी
हमने बुने है नाज़ुक सपने अपनी पलकों पर,

हमको डर है तेज़ ज्वार बहा न ले जाए उनको,


जब पहली बार समुन्दर को पास से देखा तो पाया गज़ब का आकर्षण


हमको डर है कि फस न जाए कहीं भवंर की तरह,


फोटो एडिटेड -ज्योति वर्मा

Tuesday, November 3, 2009

ये मेरा घर, ये तेरा घर

ये तस्वीर है एक सुंदर घर कि जहाँ पर पर सब कुछ है सुन्दरता है, शान्ति है अपनेपन का अहसास और सुरक्षा का विश्वास। सुंदर घर का सपना हर कोई बुनता है पर सिर्फ़ अपने लिए .......सब सोचते है कि एक आलीशान महल सा घर, सबसे महंगी कार और सारे महंगे उपकरण जो आजकल उपयोग किए जाते है उनके पास हों। सबको सिर्फ़ अपनी ज़रूरतों को पूरा करने से फुर्सत नही मिलती है कि एक पल को इनकी तरफ़ भी देखे......


(ये सब तसवीरें हमारे कैमरे की कृति है)



ये मुंबई कि सड़कों पर रहने वाले एक गरीब परिवार कि तस्वीर है। यहाँ पर न सुन्दरता है न शान्ति, न खाने को खाना है, न बिछाने को

चादर।

यहाँ पर है तो सिर्फ़ वाहनों से आता शोर और पुलिस का डर कि कब वो इसको उजाड़ दे। हर रोज़ हम इनके सामने से गुज़रते है पर कुछ लोग ही इनकी तरफ़ ध्यान देते है। आज के दौर में हम इतना ज़्यादा अपने लिए जीते है कि किसी और का ख्याल तक नही रहता है। अगर हम ज़रा सी कोशिश करे तो यह धरती सबके लिए जन्नत हो जाए बस इतना सोचे "जियो और जीने दो " साथ चल कर हम दूर तक का सफर बड़ी आसानी से पूरा कर सकते है। सोचिये कि दुनिया में हर कोई एक समान है सबको बराबर हक मिला है, सब खुश है, सबको अपनी योग्यता के अनुसार जगह मिली है तो बताइए कि समस्या कहा होगी। शायद कही कोई प्रॉब्लम रहेगी ही नही। बस थोड़ा सा टाइम निकाल कर हमको सबके लिए सोचना होगा।

Saturday, October 24, 2009

वक्त की मर्यादा को जानने लगे ,
तभी तो आसमा को अपने दामन में सिमटने लगे।
भरा था बहारों से सारा गुलसिता,
पर न जाने क्यो पतझड़ का इंतज़ार करने लगे।
बड़ी मुश्किल से संवारी थी तमन्नाओं की क्यारियां,
फ़िर न जाने क्यों ख़ुद ही उनको उजाड़ने लगे ।
सवेरे की चमकती सुर्खी से रोशन था आँगन ,
फिर ना जाने क्यों हम छत के ऊपर छत बनाने लगे।
नाउम्मीद कुछ नही था ,
बस हम यूं ही अपनी उम्मीदों पर शक करने लगे।
वक्क्त का सुनहरा दरिया बहता रहा ,
हम तो बस इसकी धारा को गिनते रहे।
सूरज रोज़ की तरह ओझिल हो गया,
और हम फिर आसमा को दामन में सिमटने लगे।
वैसे मुझे ज्यादा नही पता है पर जो हमको जो महसूस हुआ वही लिख दिया है। क्यों की हम ख़ुद अपने लिए ऐसी ही परिस्थितियां खड़ी करते है जिनके जिम्मेदार हम होते है। कुछ परेशानी का सबब हम होते है।
कहने का मतलब सिर्फ़ इतना है की हम कभी कभी इतना निराश होते है की ख़ुद ही अपना नुकसान करते रहते है।
ज़रा सी विपरीत परिस्थितियों में हाथ खड़े कर देते है अपनी हर जीत को हार में बदल देते है। फालतू में लड़ते है, बिगड़ते है, समय नष्ट करते है, बनी बनायी इमेज को ख़राब कर लेते है।

तन्हाई काफी तनहा लगती है!


कहने को सब साथ होते है पर असल में हम तन्हाहोते है। साथ होती है सिर्फ़ हमारी सांसे, ह्रदय, भावनाएं, जज़बातऔर प्रकृति का हर तत्त्व जिनसे हमारा जीवन चलता है। रोज़ जब हम नज़रे उठाते है तो सिर्फ़ दूर तक तन्हाई ही नजर आती है। टूटे सपने, अधूरी ख्वाहिशे, बीरन मजिल, सूने रास्ते, उंघते दिन, सुबकती रातें, सब साथ होते है। हम इन के साथ बड़ी आसानी से जीते चले कहते है, बिना किसी से कहे, बिना किसी से बताये। आज हमे न जाने क्यों लगा की हम अपनी सांसों से उब गए है।
काश तन्हाई को पता होता कि वह कितनी तन्हा है, तो शायद बात कुछ और होती है.................
तब उसको पता चलता कि कैसे तन्हा रहा जाता है? कितना मुश्किल होता है एक एक पल गुज़रना एकदम तन्हा?
हमको ज़्यादा तो नही पता है पर हर इंसान अकेला, तन्हा, और परेशान होता है अन्दर से............
तन्हाई एक सुर में बड़ा बेसुरा गाना गाती है जिसमे ज़िन्दगी खो जाती है।
तन्हाई जितना दुःख देती है उतना ही ख़ुद को पाने का बड़ा सरल सा रास्ता भी दिखाती है। तन्हा रहकर हम ख़ुद को पहचान सकते है, ख़ुद को समझ सकते है। और हमारा मानना है कि हम ख़ुद को जान ले तो बाकि चीजे पाना आसान हो जाएगा।

Friday, October 23, 2009

सुंदर मन की सुन्दरता


नज़रे वही रूकती है जहां सुन्दरता होती है।सब कहते है की तन की सुन्दरता तो सब तो देखते है पर मन की सुन्दरता को नही देख पाते है।पर जो दीखता है वही हम देखते है। अक्सर हमने देखा है की जहाँ सुन्दरता नजर आती है हम उसको पलट कर ज़रूर देखते है चाहे वह लड़की हो, चीज़ हो, कपडा हो, फूल हो, चिडिया हो, पशु हो। बरबस ही हमरे मुंह से निकलता है की "कितना / कितनी सुंदर है!"। किसी साधारण चीज़ को देखकर हम अनदेखा कर देते है ,ज़्यादा गौर नही करते उस पर। यह मनुष्य की प्रकृति है। हम चाहे जितना गए मन की सुन्दरता तन की सुन्दरता से ज़्यादा ज़रूरी है पर क्या हम उसको अपना पा रहे है? नही.....

सारी मन की सुन्दरता धरी रह जाती जब किसी साधाराण नैन नक्श वाली लड़की को शादी के लिए लड़के वाले देखने आते है। या फिर लड़की के पिताजी उसकी फोटो लेकर लड़के के घर वालों को दिखाते है तो यही सुनने में आता है कि लड़की कम सुंदर है। बिना उसके गुणों को जाने बगैर उसको नकार देते है। लोग हमेशा ऐसी चीज़ चाहते है जिसको हम सबको दिखा सके कि "देखो कितनी सुंदर चीज़ है हमारे पास!"

आखिर कब तक मन कि सुन्दरता को दिखावे कि सुन्दरता दबाती रहेगी?

आज के युग में तो जो सुंदर है वही पसंद है। सुन्दरता आगे आगे चलती है। सुन्दरता ख़ुद बोलती है। सुन्दरता का अपना अलग आकर्षण होता है। यह सब मानते है, जानते है। पर कहते नही है।

Thursday, October 22, 2009


सच कहने को हम हमेशा तैयार है। हमको १८ सालों में जितना अनुभव उतना किसी को नही है। हमने पत्रकारिता को नए आयाम दिए है। हम है राष्ट्रीय सहारा। हमने सोचा की चलो हम सबसे पूछे की हम क्या अपने पेपर में बदलाव ला सकते जो इसके पुरे रूप को बदल दे और ये नम्बर १ बन जाए। हम चाहते है की लोगो का विश्वास हम जीत ले ताकि लोगो को सच्चाई का पता चल सके। हम इतना अटूट विश्वास बनाना चाहते है जो कभी टूटे नही। लेकिन मेरा दिल कहता है एक दिन ज़रूर आयेगा जब हम नम्बर १ हो जायेंगे।

Monday, October 19, 2009

क्या हमको जीना आता है

शायद नही............

क्यों ?

क्योंकि हमको मरने से डर लगता है इसीलिए हमको जीना नही आता। हम बस अपनी ज़िन्दगी को काट रहे है किसी भार की तरह। आज, कल , परसों , और बरसों बस जी रहे है। हमने क्या हालत बना ली है अपनी ? इतनी लापरवाही क्यों कर रहे है समझ से बाहर है। आज जो है वह कल नही होगा इसीलिए आज में जी लो? पता है आपको सब पता है पर उस पते का क्या पता जो ज़िन्दगी से लापता हो। कहने का मतलब सिर्फ़ इतना है ज़िन्दगी सुंदर कार है जो कुछ साल बाद आउट हो जायेगी उसकी जगह नई एडवांस कार आ जायेगी। तो जल्दी कीजिए ऑफर कुछ समय के लिए ही है कैश कर लीजिये नही तो आप को पछताना पड़ेगा। हमको सिर्फ़ इतना पता होना चाहिए की हम जिंदा है तो सिर्फ़ आज भर के लिए, कल तो मरना है। ज़िन्दगी का हर लम्हा बड़े सुन्दरता के साथ जीना ही अपना अंदाज़ है

Tuesday, September 29, 2009

चलो हम भूला देंगे तुम्हारे सितम
अब कभी नही चाहेंगे तुमको सनम
सोचा जो तुम न थे
तुमने तो अपना रूप दिखा दिया
हमको जीवन का मतलब सिखा दिया
अब तुम्हारा मेरी ज़िन्दगी में कोई अक्स नही
न हो साथ तो कोई गम नही
तुमको लेकर हम परेशान ना होंगे हम
तुम उस रास्ते तो उस रास्ते ना जायेंगे हम
कहते की इतना मत तंग करो की डोर टूट जाए
वोह डोर अब टूट गई है।

Friday, September 11, 2009

तो लगता है हम और अकेले हो गए है। इतने अकेले की ज़िन्दगी बकवास लगती है। हम इतने भावुक क्यूँ है। शायद ज़िन्दगी के साथ हमने खिलवाड़ किया है उसी की सज़ा हमे मिली है। हमने हमेशा ग़लत किया सबको दुःख दिया है। अब ज़िन्दगी बोझ बन गई है जीने का मन नही करता है। हमको हमेशा एक बड़ी चीज़ की कमी खलती है जो अब शायद कभी पूरी नही हो सकती। हमे हमारे जज़बातों से नफरत सी हो गई है। वक्त के साथ मंजिल बदल गई है। अब कुछ नही चाहिए हमे सिवाय ................................
हर लड़की अपनी ज़िन्दगी जीना चाहती है।
कुछ कम कुछ और कम माँगती है।
हर कोई लिखता है उसके ऊपर,
हर श्ख्क्स सोचता है उसके लिया,
तो कौन बेबस बनता है उसको।

कभी कभी औरत के ऊपर पढ़ पढ़ कर जी दुखी हो जाता है। न जाने कितना लिखा पढ़ा गया होगा उसके ऊपर पर क्या सच में कोई उसको पहचान पाया है। अजीब पहेली है यह औरत। वोह न दुखी है न परेशान । हारी है ख़ुद से तो किसी को दोषी क्या बनाना।

Thursday, September 10, 2009

kuch kam hai

hum ko humesha lagta hai kuch kam hai. sab kuch hai par kuch kam hai. yahi sochate sochate itna safar tay kar liya hai, aage bhi yahi haal rehega. kitni bhi kamyabi mil jaye par kam lagti hai. humara man kitana asantoshi hai. kabhi zindagi me kuch behatar 2 din se zyada nahi lagta hai. kabhi kud se sawal karte hai hum ki kitni bhookh hai humare andar.













जे गणेश

Wednesday, September 9, 2009

नया अनुभव

हर रोज़ कुछ नया अनुभव ज़िन्दगी में होता है। आजकल हम हमेशा कुछ नया देखते है। शायद हमको ज़िन्दगी अब चलना सिखा रही है। अपनी राहों को अभी तक हमने समेट कर रखीं थी पर अब उन राहों को फैला कर चलने का समय आ गया है। हम हमेशा सिर्फ़ अपने बारे में सोचते है जब राहों से गुज़रते है तो अपनी आँखें बंद कर लेते है। कोई भी द्रश्य हमको सोचने पर मजबूर नही कर पता। सबको टेंशन होता है पर किसी अच्छी वजह से नही बल्कि अपने काम की वजह से। मेरे मन दुखी होता है जब मैं किसी पशु को नाली में अपनी प्यास बुझाते देखते है या प्लास्टिक की पन्नी खाते देखते है। क्यों हम उन पर अत्याचार कर रहे है। क्यों हमारी आंखें नही खुलती है। शायद हम ज़्यादा समझदार हो गए है। देख कर चीजों को नही देखते है। जब हम कॉलेज में थे तो मैं कुत्तो को बिस्कुट खिलते थे। अगर हम अपने साथ इन बेजुबानो की कुछ फिकर करें तो क्या हर्ज है।
कुछ सोचा न था पर सबकी याद ले चले
तुम तक पहुच कर तेरा अहसास ले चले
पता नही आज पहले पहले लिखना शुरू किया । वैसे हमे कुछ आता नही है पर अपने आस पास देखते है तो लगता है की लोग भी कुछ नही जानते। सब अपनी दुनिया में मस्त और व्यस्त है। सबको जो काम दिया गया है वही तक उनकी लाइफ सिमट गई है। लोग कितने बदल रहे है आश्चर्य की बात है की यह बदलाव कितनी तेज़ी से हो रहा है। अब हम इतने समझदार हो गए है की ख़ुद को नही पहचान नही रहे है। इसी तेज़ी में हम बदल रहे है सब चीजों को छोड़ कर।