दर्द का रास्ता छोड़ कर मंजिलों से हमने कहा थोडा दूर चली जाये, रास्ता कम लगता है हमारे पैरों को चलने के लिए...

Sunday, January 31, 2010

एक लड़की...साहसी होती है तभी तो....


एक लड़की सुनहरी परी बन कर दुनिया में आती है,

गुडिया-गुड्डे, रसोई-बर्तन से अपनी सहेलियों संग खेलती है,

एक दिन नन्ही से जान को अहसास होता है कि वो 'लड़की' है,

बस तभी से वह डरने लगती है,

उसको डर है कोई उसे छू न ले,

उसको डर है घूरती चुभती आँखों से ,

हर तरफ से खुद को बचाने की जंग लडती है,

घर की चहारदीवारी में ही खुद को सुरक्षित पाती है,

अपनी भावनाओ को दीवारों पर सजाती है,

बाहर निकल कर हवस भरी नज़रों को दुत्कारती है,

नज़रों के पीछे छिपे खंजर से ज़ख़्मी मन को सहलाती है,

'दुनिया में हर कोई बुरा नही है' यही खुद को रोज़ समझाती है,

वर्षों से संभाले दिल को एक अजनबी से लगाती है,

जल्द ही उसको अहसास होता है कि 'वो' नही था उसके विश्वास का हक़दार,

यही सोच कर ज़िन्दगी भर पछताती है,

आंसू उसकी कमजोरी नही लड़की का गुण है,

आंसूओ को धोखा खाने पर बहाती है,
रोने से मन हल्का होता है जानती है,

पैदा होने से लेकर मरने तक लडती ही रहती है,

उम्मीद का दामन थामे आगे ही आगे बढती जाती है।