दर्द का रास्ता छोड़ कर मंजिलों से हमने कहा थोडा दूर चली जाये, रास्ता कम लगता है हमारे पैरों को चलने के लिए...

Monday, January 11, 2010

संवेदना नहीं है तो परवाह किसको है?











इधर कुछ दिनों से हम परेशान है हमे हर कोई संवेदनहीन लग रहा है या फिर हम ज्यादा संवेदनशील हो गए है। कहते है understanding वही होती है जहाँ

Affinity, Reality, or Communication होता है। पर क्या ये तीनो element
कही मिलते है। चारो तरफ लोग अपनी position बनाने में लगे है। जब भी किसी के हाथ में पॉवर आती तो वो निरंकुश बन जाता है। और वही पर understanding ख़त्म हो जाती है। आज जो मीडिया में लोग आये है वो सोचते है वो कुछ भी छाप देंगे लोग वही स्वीकार कर लेंगे। और अफ़सोस ये समाज के watch dog ऐसा करने में सफल भी हो गए है क्योकि हमने अपनी एक दूसरे के प्रति understanding को ख़त्म कर ली है। कोई किसी के लिए तो छोडो अपने लिए भी बोलना नहीं चाहते है

अभी ९ जनवरी को पेज १ पर headline थी "मर गई इंसानियत" 'पेट में छोड़ दी १० कैचिया ' एक वीभत्स फोटो के साथ। क्या दिखाना चाहते है ये लोग। क्या ये नहीं जानते 'Ethics of Journalism'। एक डाक्टर की गलती के लिए पूरे डाक्टर समाज को दोषी बना रहे है। आप खुद किसी रोज़ trauma center जा कर देख कर आइये की कैसे ये डाक्टर दिन रात एक करके accidental केस को देखते है। चलो सब छोड़ दो यही मानो की ऐसी फोटो देखा कर आप हमको क्या बताना चाहते हो। की कितने कर्तव्यनिष्ठ होकर आप काम कर रहे है?