दर्द का रास्ता छोड़ कर मंजिलों से हमने कहा थोडा दूर चली जाये, रास्ता कम लगता है हमारे पैरों को चलने के लिए...

Wednesday, February 12, 2014

रिश्ते



एक हज़ार, दो हज़ार, तीन हज़ार तो हो गया
अब अरबों में भी गिनने कि बारी है
कुछ सहज सी कुछ नरम सी
अरमानों की टोली है
कुछ लिखते कुछ बनते चलते है
ये रिश्ते भी उम्र भर सजते है
रोज़ एक नया विश्वास भरते है
ये सच है या है कोई भ्रम
तुम चाहो तो जगा देना  नींद से
वर्ना हम तो जन्मों से सोये है
जिनके पीछे हम चलते है
उनके आगे भी तो साये है
सर्द और गर्म कितने सपने
उन सपनों में नही मिलते अपने
जो है अपने वो तो मुद्दतों से पराये है.