दर्द का रास्ता छोड़ कर मंजिलों से हमने कहा थोडा दूर चली जाये, रास्ता कम लगता है हमारे पैरों को चलने के लिए...

Monday, September 20, 2010

ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोये.......


अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।
अति का भला न बरसना, अति का भली न धूप॥


कबीर जी ने कहा है कि कभी ज्यादा बोलना नही चाहिए । हम बिना सोचे समझे,जाने बूझे कुछ भी बोलते रहते है जो बिलकुल सही नही है। ऐसी वाणी में तेज़ नही होता है । आपकी वाणी सत्य, मधुर ,और हितकारी हो जो ज्ञान के मधुर शब्दों से युक्त हो। जहाँ जिस विषय का ज्ञान न हो वहां पर कदापि नही बोलना चाहिए। ऐसे समय पर दूसरों को सुनना ज्यादा लाभदायक होता है।
कहते भी है कि अच्छा वक्ता होने के लिए अच्छा श्रोता हो ज़रूरी है। सामने वाले की बात पूरी होने से पहले नही बोलना चाहिए। जब आपके गुरु जन बोल रहे हो तो आपको चाहिए कि आप अपना दिमाग को पूरी तरह से खाली कर ले, क्योकि खाली पात्र में ही कुछ रखा जा सकता है। उस समय तर्क वितर्क नही करना चाहिए।
जब आपके माँ पिताजी कुछ कह रहे हो तो सहज ही स्वीकार कर लेना चाहिए। क्योंकि उनकी वाणी आपके लिए अमृत समान होती है। बिना सोच समझे उनके बताये रास्ते पर चलना चाहिए।
अच्छा अब आप सोच रहे होंगे कि क्यों तुम इतनी देर से बोल रही ?
हम जानते है कि ये सब कुछ आप जानते है । हमे पता है कि आप बहुत कुछ अमल भी करते है ।

हम आपसे एक बात पूछते है कि ईश्वर तो कभी हमसे संवाद नही करते ,कभी नही बोलते परन्तु हम उसको ही सर्वशक्तिमान मानते है उनसे डरते भी है !

एक बात हमने ज़रूर महसूस की है कि शब्दों में बड़ी शक्ति होती है। दिल से कही हुई हर बात सच हो जाती है। प्राचीन काल में ऋषि, योगी जन वाणी से श्राप देते थे और मनुष्य को उसको भोगना पड़ता था। आज भी ऐसा होता है पर ज्यादा बोलने के कारन लोगो की वाणी ने अपना तप ,ओजस्विता खो दिया है। इसीलिए हमेशा सोच समझकर बोलना ही उचित है।

अब हम आपको एक बात बताये कि हमारे घर पे जो भैय्या भोजन बनाते है उनका नाम है जोशी भैय्या।हमने कई बार उनको कहते सुना है कि हमने खाना उबाल दिया है जिसको हो वो खाए। अब उनके कहे अनुसार खाने का क्या स्वाद होता होगा वो आप खुद ही जान गए होंगे!

आज लोगो में वैचारिक दोषों के साथ वाणी दोष तो चरम पर है। कुछ भी किसी के लिए बोल दिया जाता है। किसी के स्वर्ग सिधारने पर लोग कहते है कि फलाने टपक गए है। और बात बात पर ने जाने कितनी गाली देते है और कहते है कि ये तो आज का टशन है।

ज्यादा बोलना और सोचना दोनों ही ठीक नही है।
मौन रहिये सारी समस्या का हल खुद ही निकल आएगा।

जैसे पेड़ में लगे फल अगर सहज पके तो ज्यादा स्वादिष्ट और मीठे होते है वैसे ही काल ,पात्र और स्थान देख कर बात करनी चाहिए।
बोलना ही नही मौन उससे भी शक्तिशाली है।

Monday, September 13, 2010


आज कल ज़िन्दगी ने नया रुख लिया है। जैसे मेरी आत्मा को किसी चीज़ की तलाश है जो मेरे मन को शांति दे सके। आजकल लगता है ईश्वर, प्रभु ,परमेश्वर,मंत्र सब को जानना चाहते है। आध्यात्मिक मनन और चिंतन में ही सुख मिलता है। ज़िन्दगी के इस मोड़ पर शायद हम बहुत अकेले है तभी भगवान पाना चाहते है और उस परमेश्वर की सर्वस्त्र उपस्तिथि को महसूस करना चाहते है। कभी किसी ज़माने में हम पूरे समय MTV देखते थे। पर अब तो हमसे वो चैनल बर्दास्त ही नही होता। किसी तरह से दुनिया से अलग रहना चाहते है।
जब हम जन्म लेते है तो माँ-बाप के साये में पलते है पर शादी एक बड़ी घटना है जो ज़िन्दगी को नया पाठ पढाती है। इंसान कितना अकेला है ये शादी के बाद ही पता चलता है। हम कोई अपनी वेदना नही बता रहे है बल्कि एक सच्चाई बता रहे है जो हर स्त्री पुरुष शादी के बाद अनुभव करते है ।शादी कोई बुरा संस्कार नही है। यह तो एक संस्था है जो अपना उद्देश भूल चुकी है। ज़िन्दगी का हर रिश्ता समय के साथ बदला है तो यह संस्था क्योंकि अछूती रहे। इसमें कोई बुराई नही है पर अब ये अपनी वास्तविक आस्था खो कर सिर्फ एक मजबूरी और बंधन बन गयी है। आदमी जब चाहे तो स्त्री को छोड़ दे , मानसिक और शारीरिक पीड़ा दे। खैर सबके साथ ऐसा नही होता या आजकल लोगो को समझौते की आदत हो गयी है। सोचते है कि इंसान को हर चीज़ तो नही मिलती ।अच्छी बात है।

यही ज़िन्दगी का अहम् पड़ाव है जब हम ईश्वर से साक्षात्कार कर सकते है। अपनी ज़िन्दगी को बदल सकते है । यही समय है जब हम मानव से महामानव बन सकते है। महामानव बनने का अधिकार सिर्फ पुरुषों को नही मिला है। हम यहाँ पर नारीवादी धारणा जैसी बात नही कर रहे है। हम तो बस अपनी वैचारिक उन्नति की बात कर रहे है जिसमे स्त्री पता नही क्यों पीछे रह जाती है। घर परिवार में इतना व्यस्त रहती है कि अपनी आत्मिकशक्ति ,विश्वास , मनोभावों और अंतरात्मा को विकसित नही कर पाती।
जहाँ बात स्त्री की आती है वहां करुना स्वयं ही आ जाती है। प्रेम, दया, सेवा, कर्तव्यनिष्ठा, उदारता और ममता की प्रतिमूर्ति नारी है। पीर तो तब होती है जब स्त्री को सारी बुराइयों की जड़ माना जाता है। शायद कही कोई बहुत बड़ी भूल हम कर रहे है।
जब आप से आपके पति या पत्नी नाराज़ हो जाते है तो आप सोचते है कि क्या बात है जो ये हमसे नही बोल रहे है पर क्या कभी सोचा है कि ये आंगन में लगे पेड़ हमसे बात क्यों नही करते।

जब छोटे बच्चे कि हर बात माँ बिना बताये जान लेती है तो किसी बेजुबान को क्यों नही समझ पाती है।

ये सब हमारी अध्यात्मिक वैचारिक कमी के कारण होता है । अपने सुख साधन में इतने मशगूल रहते है कि तमाम ईश्वरीय चीज़ों को नज़रअंदाज़ करते जा रहे है ।



Thursday, September 2, 2010

खुद को क्यों नही जानते?


हम सबको जानते है पर खुद को नही
अपने लिए हमेशा अन्जान बने रहते है
हम क्या चाहते है ,क्या करना है ?
क्या ज़िन्दगी में पाना चाहते है ?
सच में कुछ भी नही जानते
बस दूसरों के लिए त्याग करना चाहते है,
सबको खुश करने के लिए खुद मारना चाहते है ,
क्या मिलेगा तुमको सब कुछ करके?
जाग जाओ अब मन की ऑंखें खोलो
तुम जी नही पाओगे जब तक खुद को नही जानोगे ,
अपने आपको स्वीकार करो,(accept yourself)
तभी दूसरों को अपना पाओगे
खुद को हर ग़लती के लिए माफ़ करना सीखो,(forgive yourself)
तभी दुनिया को एक सूत्र में बांध पाओगे ,
स्वयं से प्यार करो,(love yourself unconditionally)
तब जाकर दूसरों को प्रेम कर पाओगे.......

Thursday, July 29, 2010

चल चलें अपने घर.....


ज़िन्दगी इतनी तेज़ दौड़ी की हम पिछड़ गए,

आँखों से झलका दरिया और गले से सागर निगल गए,
ह्रदय का तूफ़ान इतना जोर से उठा
कि भीड़ में हम तनहा हो गए,

लगा लिया है हमने अपने अपनों का मेला
बस हम सिर्फ अपने खून को भूल गए,

रिश्तों की चादर बिछा कर वीरनों में सो गए,
कहते है कि वक़्त नही है हमारे पास किसी से मिलने का,

यही कहते हुए न जाने कितना वक़्त बर्बाद कर गए,
नही लगता दिल अब इस दुनिया में ,
आओ यारों अब अपने घर चलें.......

Friday, July 2, 2010

देखो मैंने देखा है एक सपना..........


हम रोज़ एक सपना आँखों में रखके सोते है और नींद में सपने को पूरा होते हुए देखते है। खोयी खोयी सी ज़िन्दगी में सपने जीने की नयी चाह बनते है।

सुरमई अंखियों में नन्हा मुन्ना एक सपना दे जा रे !

निंदिया के उड़ते पाखी रे ,अंखियों में आजा साथी रे !

रा री रा रम ओ रा री रा ...

सच्चा कोई सपना दे जा

मुझको कोई अपना दे जा .... ....

हम अक्सर सपना देखते है कि हम परीक्षा कक्ष में बैठे परीक्षा दे रहे है ,सारे लोग पेपर सोल्व कर चुके है पर हम अभी एक भी प्रश्न का उत्तर नही दे पाए है। दर के मारे कि फेल हो जायेंगे ....हर संभव कोशिश करते है पर असफल ही रहते है। टीचर कॉपी छीन कर ले जाते है।उठने के बाद लगता है कि सारी रात हम यही सपना देखते रहे। ऐसे ही न जाने कितने सपने हम देखते है भूल जाते है।

सपने तो हमारी कल्पनाये है जो हम जागती हुई आँखों से बुनते है और नींद में देखते है। सपनों की बड़ी अनोखी दुनिया है जो मनुष्यों से लेकर पशुओ तक में पाई जाती है। कुछ सपने जो सामान्यतया सभी देखते है जैसे -कार समस्या ,एक्सीडेंट , किसी मशीनरी में कुछ खराबी , गाडी या प्लेन का छूटना ,टेस्ट में फेल होना ,किसी प्रियजन की मृत्यु या बीमार देखना ,कोई आपका पीछा कर रहा है, दांतों का टूटना, बिना कपड़ों के खुद को देखना या मिसमैच कपडे , किसी ऊँचे स्थान से गिरना या पानी में डूबना आदि । कभी कभी बड़े अजीबो गरीब सपने देखते है जैसे आकाश में उड़ना, पानी पर चलना , हवा में तैरना । ये सब हम सपनो में बड़ी आसानी से करते है। कहते है खुली आँखों के सपने सच हो जाते है।

सपने में ख़ुशी -गम , दर्द -चोट ,बीमारी ,आवाज़ सुनना ,स्वाद लेना ,देखना ,स्पर्श करना ,सुघाना आदि तमाम अहसासों को हम महसूस करते है। दर्द भरे सपने में हम विलाप करते है तो भय या डरावने सपने में हम अन्दर तक डर जाते है। लगता है सच में हमारे साथ कुछ बुरा हुआ है।

हमने जो भी प्रगति की है वो अपने सपनो की वजह से । हर कामयाम आदमी सपने देखते है । वे लोग बसंत की सुनहरी सुबह में और गर्मी की सुर्ख लाल शाम में सपनो बुनते है।

हममे से कुछ अपने सपनो को मर जाने देते है । पर कुछ लोग अपने सपनो का पोषण करते है अपने बुरे दिनों में देखे हुए महान सपनो को अच्छे दिनों की सुनहरी किरण और रोशनी में पूरा करते है।

सपने हमारे चरित्र की कसौटी है। जब हम अकेले सपना देखते है तो यह केवल एक सपना है, पर जब हम दूसरों के साथ सपना देखते है तो यह वास्तविकता की शुरुआत है। जब तक हम सपना नही देखते तब तक कुछ भी साकार नही होता ।

अच्छा हम में से कितने लोग है जो पिछली रात में देखे गए सपनो को याद करके उनका विश्लेषण करते है? शायद .....पता नही !

हमे अपने सपनो की व्याख्या खुद ही करनी चाहिए। हमारे सपने उतने ही सरल और असंभव कल्पना के होते है जितने हम खुद होते है। हम स्वयं अपने सपनो के हीरो होते है।

नींद में ,कल्पना सपनों का रूप ले लेती है। पर जागते हुए भी हम चेतना की दहलीज पर सपनों को देखते रहते है। अगली सुबह आँखों में एक सपना लेकर उठते है।

सपना एक विशुद्ध कल्पना है। अगर यह रचनात्मक शक्ति हर किसी के पास जगाने के बाद भी उपलब्ध हो तो हर कोई शेक्सपियर और दांते बन सकता है। सपने स्वतंत्र होते है इसीलिए अपने सपनों को मुक्त कर दो। सपनो में आप कभी अस्सी साल के नही हो सकते। सपनों के कुछ रंग है जो जागते स्पेक्ट्रम में मौजूद नही होते। अगर आप मीठे सपने देखना चाहते है तो पहले आप अपनी लाइफ को स्वीट बना ले।

कुछ भी कह लो सपनों की दुनिया बड़ी अद्भुत और सुनहरी होती है। सपनों को लेकर कवियों ने ना जाने कितनी कवितायेँ और गीत लिखे होंगे। सपने हमारी आशा की किरण होते है जो हमे जीवन जीने की अभिलाषा को बनाये रखते है। एक बड़ा सपना अपनी आँखों में हमेशा रखना चाहिए।

पृथ्वी के अलावा दुसरे प्लानेट पर बसने ,मृत्यू के बाद जीवन, ईश्वर के अस्तित्व को खोजना, अमरत्व को प्राप्त करना ....और बहुत से सपने ही है जो मनुष्य पूरा करना चाहता है। क्योकि मनुष्य की कल्पना अनंत है तो सपने भी असीमित और स्वच्छंद है।

Tuesday, May 25, 2010

आज कल तेरे मेरे प्यार के चर्चे है बाज़ार में!


पता है आजकल जब किसी से प्यार करो वह भाव नही देता।किसी को किसी के प्यार की कोई कीमत नही है। टेलीविजन, फिल्मोंमें तो प्यार के कितने ही रूप दिखाए जाते है। प्यार में मर मिटने ,वादे को निभाने, साथी को खुश रखने, और उसकी खुशियों को बरक़रार रखने की कोशिश में सारे रिश्ते नाते तोड़ देना। कितना अटूट ,असीम प्यार दिखाया जाता है पर असल ज़िन्दगी की हकीकत इससे बहुत परे है। आम आदमी ज़िन्दगी के ज़द्दोजहत में प्यार ,परवाह ,चाहत ,समर्पण सब को पीछे छोड़करसिर्फज़िन्दगी को कमाकर चला जाता है । वह किसी के लिए ये नही गाता मैं बारिश कर दूँ पैसों की जो तू हो जाये मेरी'। कल हमने फिल्म देखी जो एक नज़र के प्यार को ही बयां करती है जो अपने प्यार को पाने के लिए सब कुछ छोड़ने को तैयार थे । इसी प्यार के चक्कर में अंत में मर भी जाते है। बस एक ही बात आज तक हमारी समझ में नही आई कि क्या सच में कोई किसी के लिए इतना करता होगा जबकि दोनों पैसों से ही प्यार करते थे। वाकई में कभी कभी तो बड़ी कोफ़्त होती है कि क्यों फिल्मकार इतना ज्यादा किसी चीज़ को कल्पना से परे बताता है जिसका सच्चाई से दूर दूर तक का नाता नही होता ।हमारे लिए प्यार के कोई मायने नही है सिवाय एक सुन्दर अहसास के और अहसासों की जगह किस की ज़िन्दगी में है ये सब को पता है। कभी कभी हमे लगता है कि प्यार सिर्फ कहने सुनाने और देखने में ही अच्छा लगता है । असल में प्यार कभी किया नही जा सकता है। शराब का नशा और प्यार की मदहोशी बस थोड़ी देर तक ही रहता है । हाँ ये सच है की प्यार के बिना जीना भी मुश्किल है। प्यार कभी अपनी मंजिल तय नही करता क्योकि प्यार में सिर्फ रास्ते है।
हाँ प्यार पहली नज़र में ज़रूर होता है। कभी- कभी किसी की निगाहों में इतनी चाहत होती है दिल खुद बा खुद उस ओर खींचता है
'देखा तेरी मस्त निगाहों में ,शोखीहै गज़ब की , शरारत है ! '
बोलो ना प्यार क्या होता है ? बस में नही जो शायद वही प्यार है ! प्यार खोने और पाने के बीच सिर्फ एक पल का फासला होता है । कभी कभी सामने से निकल जाता है और हम पहचान नही पाते । कभी पाकर भी खो जाता है । प्यार पर किसी का बस नही होता है। किसी के लिए सब कुछ समर्पण करने का मन करता है पर जो आपको चाहता है उससे दो मीठे बोल भी नही बोले जा सकते।
कभी ना कभी प्यार का अहसास सब ने किया होता है । सबने इस दुःख के दरिया में एक बार ज़रूर डुबकी लगायी होगी और इसमें तैरने को भी हाथ पैर भी मारे होंगे । पर कुछ ही इस खेल के सच्चे खिलाडी होते हैबाकि सब वापसी के लिए हाथ पैर चालने लगते है । कुछ तो इसके चक्कर से कोसों दूर रहते है और दूर से इसका मज़ा लेते है। कुछ लोग प्यार को मजाक समझते है । कुछ लोग प्यार को किसी के तन को पाने का जरिया बनाते है।

यहाँ प्यार के खेल में कोई लिखे नियम कानून नही है।

कभी तू छलिया लगता है ,कभी आवारा लगता है ......कभी तू जुगुनू लगता है ,कभी तू जंगली लगता हैतू जो अच्छा समझे ये तुम पे छोड़ा है ।

कितनाहसीन है ये सपना कि किसी के प्यार की मंजिल हम होंगे। कोई तो होगा जो सिर्फ हमको चाहेगाऔर न जाने क्या क्या हम सोच बैठते है। पर दुनिया में सच्चा प्यार मिलना बड़ा कठिन है । शायद हम पूरी ज़िन्दगी इसी वजह से परेशां भी रहते है। प्यार की बेकरारी के लिए कहीं चैन नही है।
प्यार में आदमी बड़ी जल्दी नाम कमा लेता है। अगर दुनिया की नज़रों में आना है तो प्यार में पड़ के जल्दी से प्रसिद्ध हो सकते है। दूसरों के प्यार के बारे में जानने के लिए लोग कितने उत्सुक रहते है पर अपने प्यार को दुनिया की नज़रों से बचाने के लिए सब नौटंकी करते है । अपने प्रेमी -प्रेमिका को कजिन या दोस्त बताते है।
ये मेरा दिल प्यार का दीवाना, दीवाना दीवाना प्यार का परवाना ......

मुहब्बत तो एक रंगबाजी है जो पुरानी होकर भी बड़ी ताज़ी लगती है। मुहब्बत में तो लोग सब कुछ लुटते -लुटाते है। हर बार जब आपकी ज़िन्दगी में प्यार की एंट्री होती है तो दिल गाता है क्या करू हाय कुछ कुछ होता है.....
इश्क अजीब सा अहसास है जो कभी ख़ुशी ,ग़म ,पछतावा ,जूनून और तन्हाई देता है। ये इतना पावन और सच्चा भी होता है। पीड़ा और दर्द का सैलाब प्यार भरे दिल में हमेशा रहता है। अगर प्यार में आंसू गिरते है तो वो मोती बन जाते है और ज़िन्दगी भर यादों में रहते है ।

बस प्यार तो खोना और पाना है।

Wednesday, February 24, 2010

प्रकृति के रंग ,बाज़ारों की रौनक और होली


वसुंधरा बचाओ ,पर्यावरण बचाओ , पानी बचाओ , पेड़ बचाओ ,बाघ बचाओ, गिद्ध बचाओ! सब बच जायेगा जब हम सजग रहेंगे....................
धीरे-धीरे जाने अनजाने कितनी ही चीज़े हमारी आँखों के सामने से विलुप्त होती जा रही है पर हम बेफिक्र होकर अपनी जीविका के लिए संघर्ष कर रहे है। समाज और मीडिया के कुछ लोग इसको लेकर रोज़ कुछ न कुछ जनांदोलन करते रहते है पर लोग इस पर ज्यादा ध्यान नही देते क्योकि उनके पास टाइम नही होता है । वैसे भी आजकल के लोगो की मेमोरी भी 'गजनी' वाले आमिर खान की तरह हो गयी है जो १५ मिनट बाद सब भूल जाते है। पर लोगो की भूख बढ़ गयी है नदी , कुआ ,तालाब, झील ,जंगल सब खाते जा रहे है फिर भी चैन नही मिल रहा है। हमारी बढ़ी भूख को शांत करने के लिए सारे आनाजों के बीज शंकर(डंकल) में आ गए है, देसी बीजों का अस्तित्व ख़त्म हो गया है,या फिर संग्रालय में संरक्षित कर दिया गया है क्योकि देसी बीज भी विलुप्त हो रहे है। इसमें कोई चिंता का विषय थोड़े न है ये तो हमारी उन्नति के लक्षण है कि अब हम भी विकसित देशों कि श्रेणी में आ रहे है। जितना हम प्रकृति से दूर जायेंगे उतना हम भौतिकता की दौड़ में आगे बढ़ते जायेगे तभी तो विनाशगाथा की कहानी में चरमोत्कर्ष आएगा। उद्भव और सृजन का सुन्दर स्वरुप हमने समझा नही तभी अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे है।
बाजारीकरण का कीड़ा सबकी नसों में घुस चुका है। हमने अपनी भावनाओ ,संवेदनाओ, अनुभूतियों को स्वार्थ की गहरी नदी में फेंक दिया है। अरे ! हम कहते है कि अगर हर व्यक्ति एक पीपल ,बरगद ,पाकर या नीम का पेड़ लगा दे तो उसका क्या कम हो जायेगा। अपना परिवार तो हर इंसान बढ़ाना चाहता है पर धरा की सूनी गोद किसी को नही दिखाई देती है।
बाज़ारों की रौनक देख कर लगता है कि होली आ गयी है ,हर तरफ रंग ही रंग बिखरे है । पर कहीं से कोई बसंत की बयार नही बह रही है, किसी पेड़ की नयी कोपलें मुस्कुराती होली की बधाई नही दे रही है, कहीं पर चिड़ियों का झुण्ड गीत नही गा रहा है, कोई कौआ छत पर पापड़ नही चुरा रहा है, आम के बरौनी की भीनी खुशबू किसी ने शायद ही महसूस की होगी। हर त्यौहार की आहट बाज़ारों की रौनक से पता चलती है न कि प्रकृति के बदलाव ,सुन्दरता ,और स्वरुप से। प्रकृति को कितना पीछे छोड़ दिया है हमने कि ज़िन्दगी के मायने बदल गए।

उल्लास प्रीत और सद्भावना का त्यौहार हम प्रकृति के साथ क्यों नही मानते ? हम अपनी होली अपने तक ही मानते है धरती माँ के साथ , जानवरों के साथ,पेड़ों के साथ ,पक्षीयों के साथ क्यों नही मानते। कभी किसी पेड़ को गुलाल का टीका लगाया है अपने। किसी जानवर को घर बुला कर गुझिया ,पापड़ खिलाये है आपने। शायद बहुतों ने ऐसा किया होगा या हमेशा करते रहते होंगे। पर जिसने नही किया अगर वो करके देखे तो सच्चे मायनों में आपको त्यौहार मनाने की ख़ुशी मिलेगी।


चलो इस होली एक पेड़ लगाये, प्रकृति से जुड़े, कुछ सार्थक करे जिससे मन को सुकून मिले!

प्रकृति से जुडो होली है!!!!!!!

Friday, February 19, 2010

दुनिया बताती है हमे कि क्या है हम......

अपना ग़म दिल में छुपा लिया तो दुनिया ने सोचा खुश हैं हम

सांसों की माला को पिरोया तो दुनिया कहती है जिंदादिल है हम,

वक्त ने थमा है हमे तो दुनिया समझी कि बड़े सधे है हम,

अपनों ने ठेस दी तो ग़म नही किया तो दुनिया ने जाना कि बड़े दिलवाले है हम,

वक़्त के थपेड़ों ने हिम्मत दी तो दुनिया ने सोचा कि साहसी है हम,

मुंह कर पट्टी बांध ली हमने तो दुनिया कहती कि बड़े शांत है हम ,

अपने स्वार्थवश कुछ अच्छा किया तो दुनिया समझी कि त्यागी है हम,

थोड़ी सी ऊंचाई पा गये किस्मत से तो दुनिया ने कहा बड़े मेहनती है हम,

जीवन और पवित्रता का मिलन हुआ तो दुनिया कहती है कि योगी है हम,

एक दिन जब सारे मुखौटे उतारे तो दुनिया कहती है पागल है हम......

Friday, February 5, 2010

सिस्टम नही बदलना चाहिए....ज्योति की ब्रेकिंग न्यूज़


भोपाल के I.A.S. दंपत्ति के सरकारी आवास से करोड़ों रुपये,विदेशी मुद्रा ,जेवर आयकर विभाग ने छापा मार कर बरामद किये । घूसखोरी से जमा किये ये रूपये इनके सत्कार के लिए हम लोगों ने ही दिया होगा। पता नही क्यों इनको पुरस्कार नही दिया गया, ये सम्मान के हक़दार है क्योकि सिस्टम थोड़ी न खराब है इन्होने बस इसे लचीला बना दिया है। हर रोज़ हम लेने देने के चक्कर में पड़ते रहते है। चपरासी से लेकर बड़े अधिकारी, मंत्री जी सब टेबल के नीचे से खाने में नही हिचकते। अगर आप ऐसा नही करते तो जल्दी शुरू कर दीजिये नही तो सिस्टम से बाहर हो जायेंगे। पैसा कमाने का नशा एक बीमारी बन कर पुराने सिस्टम को ध्वस्त कर दिया है। भ्रष्टाचार सिस्टम का जन्म हुआ है। कहते है कि अगर एक सिस्टम को 90% मनुष्यों द्वारा अपना लिया जाये तो बाकी १० % को भी उसे follow (अपनाना) करना चाहिए। इससे ये सिस्टम सार्वभौमिक व्यवस्था बन जाएगी। फिर भ्रष्टाचार कहीं नही रहेगा। भ्रष्टाचार, घूसखोरी की मजबूत नाव में बैठ कर आप दुनिया का 'कमोर्शियल (commercial) अत्याचार' सहन करते हुए भवसागर को पार कर लेंगे पर सत्याव्रती की टूटी नाव से बीच में ही डूब जायेंगे। समय रहते जल्दी मजबूत नाव पर सवार हो जाये नही तो आपका कुछ नही हो सकता। भारतीय दंड संहिता की धारा १७१ में जो लिखा है उससे डरिये नही ये तो सिर्फ किताबों में लिखी मिलती है असल में इनके कोई मायने नही है। वास्तविक वेतन से आप अपना घर चला नही सकते ना.... वैसे आप थोड़े न लेते है वो लोगो का प्यार है जो आपके सत्कार में कुछ चढ़ावा दे जाते है।अपनी गोष्ठी लगा कर घूसखोरी पर चर्चे करो बहस करो पर इसकी जड़ों को मत काटना , नही तो सिस्टम बिगड़ जायेगा। हम तो पूरे सम्मान से घूस लेंगे और देंगे। इस सिस्टम को अपना कर आप जल्द ही अमीर बन जायेंगे और समाज में आपका नाम होगा। बहुत जल्दी आप दुनिया में भी अपना परचम लहरायेंगे। तो आइये हम सभी कान में रुई डालकर अंधे बन जाये और जीवन को सफल बनाये । 'जय हो भ्रष्ट सिस्टम की' !!!

Wednesday, February 3, 2010

राजनीतिक दल और नेताओ की कथनी और करनी में बहुत अंतर है....

हम सभी जानते है की राजनीतिक दल और नेता मुंह से कुछ कहते है और करते कुछ है । मीडिया में रोज़ ही इन लोगो के कारनामे हम देखते ,सुनते रहते है। संसद सत्र में अपशब्द, तोड़फोड़ , चप्पल जूते एक दूसरे पर फेंकते, माइक तोडना, शोर शराबा, अनुशासनहीनता हर बार करते नज़र आते है। और सत्र के बाद बेवजह के मुद्दों पर बयानबाजी करते है। पैसा , बाहुबल और आपराधिक रिकॉर्ड होना नेताओं के लिए ज़रूरी है। सभी ने 'लोक- लुभावने मुखौटे' पहन रखें है। देशभक्ति , जनकल्याण , एकता , देश की अखंडता को तक पर रखकर सत्ता सुख करने को सदैव तत्पर रहते है।
हमारे देश में दलीय व्यवस्था दूषित और रोगग्रस्त हो गयी है जिसका निकट भविष्य में स्वच्छ और स्वस्थ हो पाना मुश्किल है। सभी दलों और नेताओं में ईमानदारी का घनघोर अभाव है जिसके परिणाम स्वरुप ये सभी जनता में विश्वसनीय नही रह गए है।
याद कीजिये आज़ादी के बाद के नेताओं को जिन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी देश के नाम लिख दी। राजेन्द्र प्रसाद, मोरार जी देसाई , सरदार वल्लभ भाई पटेल, लाल बहादुर शास्त्री , राम मनोहर लोहिया जैसे नेताओं का जीवन कितना सादा और उच्च विचारों वाला था।
आज़ादी के बाद देश में ५६२ रियासतें थी, तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इन रियासतों को एक सूत्र में पिरोया था। आज के नेता जैसे बाल ठाकरे, राज ठाकरे (जो उत्तर प्रदेश ,बिहार और अन्य प्रान्त के लोगो को मुंबई में नही रहने देना चाहते है) चन्द्र शेखर राव (तेलंगाना राज्य ) , अजीत सिंह ( हरित प्रदेश ) राजा बुंदेला (बुंदेलखंड राज्य ) जैसे नेता अपने स्वार्थों को पूरा करने के लिए राज्य की मांग करते रहते है । नेताओं ने अपनी नासमझियों , संकीर्णताओ और कुटिलताओ से जनता को पराजित और भ्रमित कर दिया है।
1985 के दल बदल निषेध कानून के साथ राजनीतिक दल वैधानिक व्यवस्था के अंग बन गए है पर सभी वाकिफ है कि नेताजन इस कानून का कितना मखौल उड़ाते है, कब कौन किस पार्टी में है या जायेगा कोई नही बता सकता, बड़ी बेशर्मी से दल बदलते रहते है।। 1989 में 'जन प्रतिनिधित्व अधिनियम' की धारा २९ के अनुसार सभी राजनीतिक दलों को संविधान के प्रति समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता तथा लोकतंत्र के प्रति निष्ठां घोषित करने की व्यवस्था की गयी है। सभी दलों ने लोकतंत्र ,धर्म ,जाति,क्षेत्र के नाम पर राजनीति का भगवाकरण कर दिया है।

सबसे विडम्बना की बात तो यह है कि संविधान के अनुच्छेद ५१ में अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा का प्रावधान किया है। जो विश्व शांति सुरक्षा ,अंतर्राष्ट्रीय विधि के प्रति आदर और पालन , सभी देशों के बीच मधुर संबंधों की अपील करता है। क्या आपको लगता है कि हमारे नेता संविधान निर्माताओं की दूरदर्शिता को समझ पाएंगे जिन्होंने विश्व संसद की कल्पना की थी। नेताओं को तो अपने देश की शांति और व्यवस्था की चिंता है नही तो विश्व के बारे में क्या सोचेंगे। नेताजन बोलते ज्यादा है करते कुछ नही है। देशभक्ति, स्वाभिमान, लोकहित सब गुज़रे ज़माने की बातें हो गयी है। देश की नैय्या राम के भरोसे है। हमे विश्वास है कि आने वाले समय में हम नेताओ के वादों के भ्रम से उभर कर देश को नए सूत्र में पिरोयेंगे.....

Sunday, January 31, 2010

एक लड़की...साहसी होती है तभी तो....


एक लड़की सुनहरी परी बन कर दुनिया में आती है,

गुडिया-गुड्डे, रसोई-बर्तन से अपनी सहेलियों संग खेलती है,

एक दिन नन्ही से जान को अहसास होता है कि वो 'लड़की' है,

बस तभी से वह डरने लगती है,

उसको डर है कोई उसे छू न ले,

उसको डर है घूरती चुभती आँखों से ,

हर तरफ से खुद को बचाने की जंग लडती है,

घर की चहारदीवारी में ही खुद को सुरक्षित पाती है,

अपनी भावनाओ को दीवारों पर सजाती है,

बाहर निकल कर हवस भरी नज़रों को दुत्कारती है,

नज़रों के पीछे छिपे खंजर से ज़ख़्मी मन को सहलाती है,

'दुनिया में हर कोई बुरा नही है' यही खुद को रोज़ समझाती है,

वर्षों से संभाले दिल को एक अजनबी से लगाती है,

जल्द ही उसको अहसास होता है कि 'वो' नही था उसके विश्वास का हक़दार,

यही सोच कर ज़िन्दगी भर पछताती है,

आंसू उसकी कमजोरी नही लड़की का गुण है,

आंसूओ को धोखा खाने पर बहाती है,
रोने से मन हल्का होता है जानती है,

पैदा होने से लेकर मरने तक लडती ही रहती है,

उम्मीद का दामन थामे आगे ही आगे बढती जाती है।

Thursday, January 28, 2010

लेखन मानव की अद्भुत कला है आइये जाने....

मनोभावों को व्यक्त करने का सशक्त माध्यम है लेखन कार्य ...
आदि मानव ने जब समूहों में रहना प्रारंभ किया तब वे संकेतो में अपने भावों को एक दूसरों को संचारित करते थे। फिर विशिष्ट ध्वनियों से , मौखिक भाषा द्वारा अपने विचारों का सम्प्रेषण किया। रचनात्मक और विशिष्ट संकेतो ,भावों को प्रकट करने के लिए पत्थरों पर कुछ आड़ी, तिरछी रेखाओं के साथ चित्र उकेरने लगे जो कालांतर में शिलालेखों के नाम से जाने जाते है( प्राचीन काल के तमाम शिलालेख प्राप्त हुए है )। कुछ इसी तरह मौखिक भाषा ने लिखित भाषा का रूप में परिवर्तित हुई। भाषा का विकास मानव सभ्यता की अभूतपूर्व उपलब्धि है। भाषा ही मनुष्य को अन्य प्राणियों से अलग करती है और जिसको भाषा रुपी पुरस्कार प्राप्त है । कुछ विद्वानों का मानना है कि भाषा का विकास स्वतः ही हुआ है मनुष्य की ज़रूरत के हिसाब से । संस्कृत भाषा दुनिया सबसे प्राचीन भाषा कही जाती है । भाषा का सफ़र शिलालेखों से ई भाषा (e-language fax,email,blog,web librery,e books) तक , अभी आगे जारी है। (भाषा का तात्पर्य पढने ,लिखने और बोलने(read,write,speech) से है )कहने का तात्पर्य है की भाषा का मानव सभ्यता विकास में महान योगदान रहा है और आगे भी रहेगा।
इसीलिए आज मन कर रहा है कि अच्छे लेखन (good writing) के बारे में बात कि जाये। मन कि बातों को कागज़ या किताबों में उकेरने से पहले लेखक मन में लम्बा विमर्श करते है या फिर झट से जो विचार मन में आया लिख डाला । लेखन कला बड़ी सुन्दर विधा है भाषा को परिष्कृत, चिर स्थाई, सम्पूर्ण और मन के भावों को रचनात्मक ढंग से कहने के लिए। लेखनी से निकली स्याही से न जाने कितनी क्रांतियाँ हुई । जनसंचार बढ़ा । लेखन कला से निकले अविस्मरनीय ग्रन्थ , रचनाये, महाकाव्य का पान आज हम कर रहे है।
आज सूचना प्रौधौगिकी के युग में जहाँ कंप्यूटर ने अपना वर्चस्व हर जगह बना लिया है पर लेखनी का जादू आज भी सिर चढ़ा कर बोलता है । किताबों और न्यूज़ पेपर का क्रेज़ आज भी लोगो में बरक़रार है। हिंदी में कबीर , सूर , तुलसी ,मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा , धर्मवीर भारती ,भगवती शरण वर्मा , सूर्यकांत त्रिपाठी निराला , सुमित्रानंदन पन्त आदि ना जाने कितने लेखक है जो सिर्फ अपनी लेखनी के जरिये आज भी हमारे बीच मौजूद है।
समय के साथ आज लेखन कि उत्कृष्टता में कमी आई है। लेखन की भाषा में आम बोलचाल की भाषा, शब्दों का प्रयोग होने लगा है। लेखन की शैली में तमाम बदलाव आये है। हम यहाँ लेखन की कमी बताने नही जा रहे है बल्कि लेखन कला को और सुन्दर ,उत्कृष्ट कैसे बनाये ये बताने की कोशिश कर रहे है।
अच्छा लेखन वही होता है जो बिना किसी कठिनाई के समझा जा सके ,मतलब सीधा ,सटीक और धाराप्रवाह । सबसे पहले अच्छा लेखक बनने के लिए अच्छा पाठक होना चाहिए। अब आप पूछेंगे कि क्या पढ़े ? तो आपको बता दें कि आप पढना शुरू कीजिये खुद ही जान जायेंगे कि क्या पढ़ें । क्योकि पढने ( reading interest) की रूचि अलग अलग होती है । कोई साहित्य में, कोई कहानी में , कोई उपन्यास में ,कोई काव्य में, हम सबकी पसंद अलग होती है। क्या आपको पता है कि ऐसा कोई नही है जो रोज़ कुछ न कुछ पढता ना हो। वस्तुतः आप जाने -अनजाने में एक नियमित पाठक है। चाहे सुबह न्यूज़ पेपर पढ़ते हो , मैगजीन के पन्ने पलट ले या फिर कोर्स कि किताबें पढ़ते हो। बस अब आपको ज़रूरत है अपनी इस आदत को रचनात्मक और नियमित रूप से करने की है। आप इसके लिए किसी लाइबरेरी का चुनाव कर सकते है। नियमित रूप से पुस्तकालय जा कर आप किसी कहानीकार ,उपन्यासकार , निबंधकार या जो पसंद हो पढ़ सकते है । हिंदी साहित्य में आप तुलसीदास की 'रामचरित मानस' ,धर्मवीर भारती की 'गुनाहों का देवता' पढ़ कर रुचि विकसित कर सकते है इनके साहित्य को आत्मसात करने के बाद आप पाएंगे कि स्वयं ही आपकी सोच और कल्पना में अभूतपूर्व बदलाव आ गया है। एक बार पढने की रुचि बन जाने पर आप लेखन के विशाल समुद्र में गोते लगा सकते है। (आप अपनी पसंद के लेखक को पढ़ सकते है हमने तो उपर्युक्त लेखकों को उदाहरण के लिए बताया है। )
आप कुछ भी पढ़ सकते है बस आपको समझना है कि कैसे लेखक ने अपने भाव को व्यक्त किया है।कलम के जादू को पहचानना है उनके लेखन में । शब्दों , उपमाओ , विशेषणों से वाक्यों की रचना कैसे की है यह समझना है।
आप सब को पता है कि लेखन कार्य के लिए धैर्य , कड़ी मेहनत और समझ कि पाठक क्या चाहता है(understanding of what your reader need)। आज आपको संक्षेप में बताते है कि अच्छे लेखन में क्या ज़रूरी है।
१- लेखन समझने में आसान, छोटे वाक्यों के साथ to the point होना चाहिए ।(clear and concise)
२- कम शब्दों में पूरी बात ।(minimum number of words)
३- सुन्दरता के साथ सौम्यता का मिश्रण होना चाहिए।( good writing is modest)

आज के लिए इतना ही फिर मिलेंगे इसके विस्तार के लिए....ज्योति

Tuesday, January 26, 2010

मीडिया का बदलता स्वरुप और हम ....ज्योति वर्मा

मीडिया और आम आदमी का क्या रिश्ता है?
हम हमेशा से यही सोचते रहे है की हमको जागरूक और ज़िम्मेदार नागरिक बनाने के लिए सम सम्यायिक जानकारी होनी चाहिय ,इसीलिए मीडिया इस कार्य के लिए उपयुक्त साधन है। स्वतंत्रता से पहले मीडिया आज़ादी के लिए लड़ने का साधन थी , अब वही मीडिया infomedia, infotainment media,new media के रूप में जाना जाता है। सूचना प्रौधोगिकी के युग में मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। digital world, cyberculture, virtual society, globlal villege आदि आधुनिक concept न्यू मीडिया की ही देन हैं। न्यू मीडिया के माध्यम से हम एक क्लिक करते ही दुनिया के किसी भी कोने की जानकारी पा सकते है।
Information Technology ने मीडिया को और शक्तिशाली बनाया , जिससे वैश्वीकरण के युग में मीडिया जनसंचार का सशक्त माध्यम बना । मीडिया के दुअरा सामाजिक ,आर्थिक, राजनितिक बदलाव और सुधारो के लिए आपर सम्भावनाये है।
मीडिया के रूप है प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रोनिक मीडिया ,वेब पोर्टल ।
सोचने की बात सिर्फ इतनी है कि वैश्वीकरण के दौर में मीडिया का भी बाजारीकरण हो गया है। और इस दौर में मीडिया की भूमिका ही बदल गयी या फिर मीडिया अपना मूल उद्देश भूल कर भटक गया है। आज मीडिया का एक वर्ग विशेष जनहित के बजाये अपना हित बनाने में लगा है। nose for news, ethics of journalism, Public interest, authenticity सब कुछ दर क़िनार करके मीडिया ने अलग राह अपना ली है
ज़िम्मेदार कौन?
मसाले दार न्यूज़ ,सनसनीखेज खबरे ,अजीबो ग़रीब करतब, स्टिंग ऑपरेशन को आज मीडिया जो दिखा , बता रहा है उसके ज़िम्मेदार हम है क्योकि कही न कही हम ऐसा ही चाहते है। याद कीजिये जब कारगिल का युद्ध हो रहा था तब उसी समय फिल्मस्टार विवेक ओबेरॉय ने एक प्रेस कांफेरेंस की थी (मामला सलमान खान का था की वो विवेक को बार बार फ़ोन कर रहे थे ) तब उस वक़्त लोगो ने विवेक की कांफेरेंस में दिलचस्पी ली थी कारगिल के युद्ध से ज्यादा। तो मीडिया वही दिखा रहा है जो जनता चाहती है।
आज दर्शक ,पाठक ,श्रौता खुद ही उदासीन हो गया है। हम सब को पता है की मीडिया को उतनी ही स्वतंत्रता प्राप्त है जितनी की एक आम आदमी ,यानी की जो भारतीय संविधान में वरणित मौलिक आधिकार का अनुच्छेद १९(१) (अ) ( अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार )बताता है। इसका उपयोग मीडिया कर रहा है पर लोग नही कर रहे है। हम न्यूज़ पेपर पढ़ कर किनारे रख देते है, खबर देख कर भूल जाते है,समाचार सुनकर आपस में कुछ चर्चा करके मन की भड़ास निकाल लेते है पर ज़रा सा भी अपने अधिकार का प्रयोग नही करते। मीडिया के महज मुठ्ठी भर लोगो ने जनसंचार का ठेका ले रखा है। सब जानते है की खबरों को दबाने के लिए कौन कौन से पासे खेले जाते है। टुच्चे छाप के रिपोर्टर पता नही क्या लिखते ?क्या छापते है वही जान सकते है । रिपोर्टर न्यूज़ पेपर को बेचने के लिए , चैनल की टी आर पी बढाने के लिए खबरों को सनसनीखेज बनाने में लगे रहते है।
सच तो ये है की पूरी मीडिया गन्दी नही है बल्कि कुछ लोगो की वजह से यहाँ कर्त्तव्य बोध की कमी , अराजकता का माहौल है। कहते भी एक मछली पूरे तालाब को गन्दा कर देती है , मीडिया में न जाने कितनी मरी मछलिया है जो इस मीडिया हब को गन्दा कर रही है, बेसिर -पैर की खबरों को हम पर थोप रहे है, लोक विमर्श को संकुचित बना रहे है।
आखिर कब तक हम सोते रहेंगे कब हम अपने अधिकारों को जानेगे और आवाज़ उठाएंगे ?
बस वक़्त आ गया है संकल्प लेने का कि अब हम भी अपने अधिकारों का प्रयोग करेंगे। मीडिया के दोस्त नही आलोचक बनकर उससे सतर्क रहेंगे।

Thursday, January 21, 2010

युवा भारत के युवा बच्चे



नन्हा मुन्ना रही हूँ देश का सिपाही हूँ, बोलो मेरे संग


जय हिंद
जय हिंद!


कल गणतंत्र दिवस है हर बच्चा कल का सिपाही है...कल देश के हर कोने में बच्चे गणतंत्र दिवस परेड में अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे। बहादुर बच्चो को कल प्रधानमंत्री जी सम्मानित करेंगे। २२ सदी के बच्चो में अपार सम्भावनाये है। बच्चो ने हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी है जैसे मीडिया, फिल्म, कला , विज्ञानं , संस्कृति, पर्यावरण , योग आदि में बराबर योगदान दे रहे ही ।


पर न जाने क्यों मन में एक चुभन सी होती ही बच्चो, युवाओ को लेकर, उनके व्यवहार, उनके तौर- तरीको से कुछ परेशानी होती हैं । हमको सोचना चाहिए युवा भारत की छवि किस दिशा में जा रही हैं ।


हम आप हर जगह यही पढ़ते , सुनते, मूवी देखते बस यही सीखते रहते है की 'बच्चो को समझो,उनकी भावनाओ को जानो, उनको वो सब करने दो जो वो चाहते है , बच्चो को इतनी छूट देनी चाहिए की अपना भविष्य खुद बना सके, और न जाने क्या क्या। आमिर खान साहब ने तो इस विषय पर जैसे p.hd कर डाली हो। उनकी हर फिल्म में कुछ न कुछ हम सिख ही लेते है कभी चाहते हुए कभी ना चाहते हुए। पर दुनिया अब पहले जैसी नहीं रह गयी है और ना हम, ना हमारे बच्चे , न युवा । अच्छा नही लगता ना ये सब पढ़ते हुए तो याद कीजिये अपना बचपन और आज अपने बच्चे के बचपन को। कितना फर्क नज़र आएगा वो आप ही महसूस करेंगे। पहले हम बच्चे माँ के दामन को २० -२५ साल तक पकडे रहते, क्या करना है क्या नही सब पूछते अगर कोई मेहमान घर आते तो घंटो उनके सामने नही जाते मारे शरम के । माँ बुलाती रहती की बेटा प्रणाम ही कर लो तो बड़ी मुन्व्वत के बाद मिलने आते । आज कल के बच्चे को देखो कितने स्मार्ट होते है उनको कुछ बताना या सिखाना नही पड़ता हर समय presentable और इतने समझदार होते है कि लगता है हर बच्चा 'अभिमनुय' हो। हर बच्चा लगता है over active , समय से पहले बड़े हो रहे है। हम तो कभी कभी सोचते है कि सन २००० के बाद के बच्चो को किसने बनाया है शायद भगवान् ने नए constructor अप्पोइंत किये है है। हर जगह बच्चे अपना कमाल दिखा रहे है । ज़रूरत से ज्यादा समझदार, समय से तेज़ , आकाश से खुली सोच , हर तरह के कामो में निपुण, सब कुछ उम्मीद से ज्यादा करते है आज के बच्चे । बड़ा अच्छा लगता है की हमारे बच्चे हमसे कितना आगे है । इन सब के प्रमुख कारण - आस पास का परिवेश, (Environment), शिक्षा (Education), अभियांत्रकी (Technology)। हमारे बच्चे अभूतपूर्व है।
सब कुछ अच्छा है पर कुछ कहीं बहुत धीरे धीरे बदल रहा है । कुछ अप्रिय तथ्य भी जुड़े है इससे - जैसे
*हम मानते है की बच्चे भगवान् का रूप, मासूम , निश्छल होते है , पर आज कल के बच्चे आपको पलक छपकते ही बेवकूफ बना देते है। खुद ही महसूस किया होगा अपने इस बात को।

*अपनी बात मनवाने के लिए बड़ी आसानी से झूठ बोलते है की आप समझ नही पाएंगे की वास्तव में एक बच्चा बोल सकता है .
*एक्टिंग बड़े अच्छे से करते हैं ।
*आप अपने आस पास युवा लड़के -लडकियों को बस नोटिस कीजिये आप समझ जायेंगे हम क्या कहना चाहते हैं ।
हमको अभी से इन सब छोटी छोटी बातो का ख्याल रखना पडेगा । इस समय हमारा देश और युवा बड़े परिवर्तन के दौर से गुज़र रहे हैं। इस परिवर्तन के दौर को सकारात्मक दिशा देना अति आवश्यक हैं।


आज के बच्चो और युवाओ को सिर्फ सुरक्षा , भरोसा , आत्मविश्वास , और प्यार की ज़रूरत ही जो उनको अच्छा भारतीय बनाने से पहले अच्छा इंसान बनायेंगे।






Wednesday, January 20, 2010

ज़िन्दगी एक सफ़र है सुहाना...मेरी नज़र से देखो...ज्योति


चलो गंगा माँ के नीर में बहते हुए कहीं चलते है.........

तो हम पहले गंगा माँ के मंदिर के दर्शन करले....












ये कश्ती वाला क्या गा रहा है ?


गंगा के तन को छूती सूरज की किरणे... दूर तक निगाह में रोशनी की नदी...




गंगा का सुन्दर किनारा... शांत और निश्छल...
मंदिर में झांकता सूरज...
ये भाई साहब हमको देख कर बोले 'मेरी भी फोटो ले लो ना !' किन्ना सोना लग रहा है!!
भूख बहुत लगी है!! तो चलते है लखनऊ नवाबो के शहर में.....
लखनऊ की जामा मस्जित का सुन्दर नज़ारा
हमारी नजरो से देखो जीविता नज़र आएगी..........
लखनऊ के सडको पर मोरनी बेफिक्र होकर घुमती है....तुम अपने दिल की धडकनों को गिन के बता!
तो चलते है इनके साथ कहीं दूर....

हम आ गए है बहते हुए जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क...हर तरफ शांति और कुदरत का संगीत, सुन्दरता के दर्शन॥

नज़र और पनाहों के खातिर ये न होते तो कुछ भी न होता॥


कोई है यहाँ पर? खोजों !!!!








दिन में उल्लू !
हमको देख कर शरमा गए और मुह फेर लिया....



तूम अपने रास्ते हम अपने...फिर कब मिलेगो? जब तुम कहोगे... गजनी ने गज राज से कहा.... सच में हमने सुना था!!!








बचना ये हसीनो लो मैं आ गया!!



कहते है जहाँ हम होते है वहां कियो नहीं दीखता है...






दूर वहां से तेरा नूर दिखता है... आ गए नैनीताल







क्या सोच रहे है? सुन्दर है ना!!




एक साथ इतने लोग सडक पे आ गए भाई हम तो फंस गए!!!!










बहुत दिन से नहाया नहीं होगा अपने तो इनसे कुछ सीखो जाके नहा लो!







रुके रुके से कदम रुक के बार बार चले....
करार दे के बेकरार होके चले...
न जाने हमको कहाँ ले जायेंगे ...


ज्ञान की देवी माँ सरस्वती के कुछ रूप जो हमने देखे आज- ज्योति

आज मुकुल सर ने कहा की हर त्यौहार को जीना चाहिए इसलिए हमने सोचा चलो आज बसंत पंचमी को जी जाये।
आज बसंत पंचमी है और माँ सरस्वती की पूजा भी बड़े धूमधाम के होती है। हमने अक्सर ध्यान दिया होगा की आजकल लोग हर चीज़ के लिए लोग अपनी आपत्ति करते रहते है कभी वन्दे मातरम को लेकर तो कभी माँ सरस्वती की वंदना के लिए। अपने शहर लखनऊ में आपको हर गली मोहल्ले में हनुमान जी, शिव जी, शनिदेव और माँ दुर्गा के मंदिर मिल जायेंगे पर ज्ञान की देवी माँ सरस्वती का मंदिर ढूढ़ना पड़ता है। आज हमने भी सोचा चलो माँ के दर्शन कर आते है पर माँ का मंदिर शहर में कहा है नहीं पता था। हमने अपनी दोस्त अर्चना से पूछा तो उसने कहा की उसको एक मंदिर पता है जो काफी पुराना है। हमने कहा चलो चलते है। हमने माँ की अद्भुत प्रतिमा देखी जो आप भी देखिये-









लखनऊ के सबसे पुराने एक मात्र माँ सरस्वती की प्रतिमा है जो दर्शनीय है।


















ये मंदिर पक्का पुल के पास शुक्ल घाट पर स्थित है। कहते है की लखनऊ विश्विधायालय के हनुमान सेतु के हनुमान जी और लखनऊ मेडिकल कॉलेज की माँ सरस्वती। जहाँ कॉलेज के ज़्यादातर छात्र-छात्राए आशीर्वाद लेने आते है। अपनी अपनी आस्था है। आज सबने माँ से विद्या, सफलता, और सुख की कामना की होगी पर क्या किसी ने इनके लिए भी कुछ माँगा होगा








ये मासूम जो सडको पर अपना बचपन बिता रहे है।









ये वफादार दोस्त जो नाली में पल रहे है।









ये गरीब जो जाड़े में बिना कपड़ो के ठुठुर रहे है।
चलो! मिल कर हम आज इनके लिए प्रार्थना करे और बसंत पंचमी को जी ले !!!!!!!!!!!!!

Monday, January 11, 2010

संवेदना नहीं है तो परवाह किसको है?











इधर कुछ दिनों से हम परेशान है हमे हर कोई संवेदनहीन लग रहा है या फिर हम ज्यादा संवेदनशील हो गए है। कहते है understanding वही होती है जहाँ

Affinity, Reality, or Communication होता है। पर क्या ये तीनो element
कही मिलते है। चारो तरफ लोग अपनी position बनाने में लगे है। जब भी किसी के हाथ में पॉवर आती तो वो निरंकुश बन जाता है। और वही पर understanding ख़त्म हो जाती है। आज जो मीडिया में लोग आये है वो सोचते है वो कुछ भी छाप देंगे लोग वही स्वीकार कर लेंगे। और अफ़सोस ये समाज के watch dog ऐसा करने में सफल भी हो गए है क्योकि हमने अपनी एक दूसरे के प्रति understanding को ख़त्म कर ली है। कोई किसी के लिए तो छोडो अपने लिए भी बोलना नहीं चाहते है

अभी ९ जनवरी को पेज १ पर headline थी "मर गई इंसानियत" 'पेट में छोड़ दी १० कैचिया ' एक वीभत्स फोटो के साथ। क्या दिखाना चाहते है ये लोग। क्या ये नहीं जानते 'Ethics of Journalism'। एक डाक्टर की गलती के लिए पूरे डाक्टर समाज को दोषी बना रहे है। आप खुद किसी रोज़ trauma center जा कर देख कर आइये की कैसे ये डाक्टर दिन रात एक करके accidental केस को देखते है। चलो सब छोड़ दो यही मानो की ऐसी फोटो देखा कर आप हमको क्या बताना चाहते हो। की कितने कर्तव्यनिष्ठ होकर आप काम कर रहे है?