मीडिया और आम आदमी का क्या रिश्ता है?
हम हमेशा से यही सोचते रहे है की हमको जागरूक और ज़िम्मेदार नागरिक बनाने के लिए सम सम्यायिक जानकारी होनी चाहिय ,इसीलिए मीडिया इस कार्य के लिए उपयुक्त साधन है। स्वतंत्रता से पहले मीडिया आज़ादी के लिए लड़ने का साधन थी , अब वही मीडिया infomedia, infotainment media,new media के रूप में जाना जाता है। सूचना प्रौधोगिकी के युग में मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। digital world, cyberculture, virtual society, globlal villege आदि आधुनिक concept न्यू मीडिया की ही देन हैं। न्यू मीडिया के माध्यम से हम एक क्लिक करते ही दुनिया के किसी भी कोने की जानकारी पा सकते है।
Information Technology ने मीडिया को और शक्तिशाली बनाया , जिससे वैश्वीकरण के युग में मीडिया जनसंचार का सशक्त माध्यम बना । मीडिया के दुअरा सामाजिक ,आर्थिक, राजनितिक बदलाव और सुधारो के लिए आपर सम्भावनाये है।
मीडिया के रूप है प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रोनिक मीडिया ,वेब पोर्टल ।
सोचने की बात सिर्फ इतनी है कि वैश्वीकरण के दौर में मीडिया का भी बाजारीकरण हो गया है। और इस दौर में मीडिया की भूमिका ही बदल गयी या फिर मीडिया अपना मूल उद्देश भूल कर भटक गया है। आज मीडिया का एक वर्ग विशेष जनहित के बजाये अपना हित बनाने में लगा है। nose for news, ethics of journalism, Public interest, authenticity सब कुछ दर क़िनार करके मीडिया ने अलग राह अपना ली है
ज़िम्मेदार कौन?
मसाले दार न्यूज़ ,सनसनीखेज खबरे ,अजीबो ग़रीब करतब, स्टिंग ऑपरेशन को आज मीडिया जो दिखा , बता रहा है उसके ज़िम्मेदार हम है क्योकि कही न कही हम ऐसा ही चाहते है। याद कीजिये जब कारगिल का युद्ध हो रहा था तब उसी समय फिल्मस्टार विवेक ओबेरॉय ने एक प्रेस कांफेरेंस की थी (मामला सलमान खान का था की वो विवेक को बार बार फ़ोन कर रहे थे ) तब उस वक़्त लोगो ने विवेक की कांफेरेंस में दिलचस्पी ली थी कारगिल के युद्ध से ज्यादा। तो मीडिया वही दिखा रहा है जो जनता चाहती है।
आज दर्शक ,पाठक ,श्रौता खुद ही उदासीन हो गया है। हम सब को पता है की मीडिया को उतनी ही स्वतंत्रता प्राप्त है जितनी की एक आम आदमी ,यानी की जो भारतीय संविधान में वरणित मौलिक आधिकार का अनुच्छेद १९(१) (अ) ( अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार )बताता है। इसका उपयोग मीडिया कर रहा है पर लोग नही कर रहे है। हम न्यूज़ पेपर पढ़ कर किनारे रख देते है, खबर देख कर भूल जाते है,समाचार सुनकर आपस में कुछ चर्चा करके मन की भड़ास निकाल लेते है पर ज़रा सा भी अपने अधिकार का प्रयोग नही करते। मीडिया के महज मुठ्ठी भर लोगो ने जनसंचार का ठेका ले रखा है। सब जानते है की खबरों को दबाने के लिए कौन कौन से पासे खेले जाते है। टुच्चे छाप के रिपोर्टर पता नही क्या लिखते ?क्या छापते है वही जान सकते है । रिपोर्टर न्यूज़ पेपर को बेचने के लिए , चैनल की टी आर पी बढाने के लिए खबरों को सनसनीखेज बनाने में लगे रहते है।
सच तो ये है की पूरी मीडिया गन्दी नही है बल्कि कुछ लोगो की वजह से यहाँ कर्त्तव्य बोध की कमी , अराजकता का माहौल है। कहते भी एक मछली पूरे तालाब को गन्दा कर देती है , मीडिया में न जाने कितनी मरी मछलिया है जो इस मीडिया हब को गन्दा कर रही है, बेसिर -पैर की खबरों को हम पर थोप रहे है, लोक विमर्श को संकुचित बना रहे है।
आखिर कब तक हम सोते रहेंगे कब हम अपने अधिकारों को जानेगे और आवाज़ उठाएंगे ?
बस वक़्त आ गया है संकल्प लेने का कि अब हम भी अपने अधिकारों का प्रयोग करेंगे। मीडिया के दोस्त नही आलोचक बनकर उससे सतर्क रहेंगे।