दर्द का रास्ता छोड़ कर मंजिलों से हमने कहा थोडा दूर चली जाये, रास्ता कम लगता है हमारे पैरों को चलने के लिए...

Tuesday, September 29, 2009

चलो हम भूला देंगे तुम्हारे सितम
अब कभी नही चाहेंगे तुमको सनम
सोचा जो तुम न थे
तुमने तो अपना रूप दिखा दिया
हमको जीवन का मतलब सिखा दिया
अब तुम्हारा मेरी ज़िन्दगी में कोई अक्स नही
न हो साथ तो कोई गम नही
तुमको लेकर हम परेशान ना होंगे हम
तुम उस रास्ते तो उस रास्ते ना जायेंगे हम
कहते की इतना मत तंग करो की डोर टूट जाए
वोह डोर अब टूट गई है।

Friday, September 11, 2009

तो लगता है हम और अकेले हो गए है। इतने अकेले की ज़िन्दगी बकवास लगती है। हम इतने भावुक क्यूँ है। शायद ज़िन्दगी के साथ हमने खिलवाड़ किया है उसी की सज़ा हमे मिली है। हमने हमेशा ग़लत किया सबको दुःख दिया है। अब ज़िन्दगी बोझ बन गई है जीने का मन नही करता है। हमको हमेशा एक बड़ी चीज़ की कमी खलती है जो अब शायद कभी पूरी नही हो सकती। हमे हमारे जज़बातों से नफरत सी हो गई है। वक्त के साथ मंजिल बदल गई है। अब कुछ नही चाहिए हमे सिवाय ................................
हर लड़की अपनी ज़िन्दगी जीना चाहती है।
कुछ कम कुछ और कम माँगती है।
हर कोई लिखता है उसके ऊपर,
हर श्ख्क्स सोचता है उसके लिया,
तो कौन बेबस बनता है उसको।

कभी कभी औरत के ऊपर पढ़ पढ़ कर जी दुखी हो जाता है। न जाने कितना लिखा पढ़ा गया होगा उसके ऊपर पर क्या सच में कोई उसको पहचान पाया है। अजीब पहेली है यह औरत। वोह न दुखी है न परेशान । हारी है ख़ुद से तो किसी को दोषी क्या बनाना।

Thursday, September 10, 2009

kuch kam hai

hum ko humesha lagta hai kuch kam hai. sab kuch hai par kuch kam hai. yahi sochate sochate itna safar tay kar liya hai, aage bhi yahi haal rehega. kitni bhi kamyabi mil jaye par kam lagti hai. humara man kitana asantoshi hai. kabhi zindagi me kuch behatar 2 din se zyada nahi lagta hai. kabhi kud se sawal karte hai hum ki kitni bhookh hai humare andar.













जे गणेश

Wednesday, September 9, 2009

नया अनुभव

हर रोज़ कुछ नया अनुभव ज़िन्दगी में होता है। आजकल हम हमेशा कुछ नया देखते है। शायद हमको ज़िन्दगी अब चलना सिखा रही है। अपनी राहों को अभी तक हमने समेट कर रखीं थी पर अब उन राहों को फैला कर चलने का समय आ गया है। हम हमेशा सिर्फ़ अपने बारे में सोचते है जब राहों से गुज़रते है तो अपनी आँखें बंद कर लेते है। कोई भी द्रश्य हमको सोचने पर मजबूर नही कर पता। सबको टेंशन होता है पर किसी अच्छी वजह से नही बल्कि अपने काम की वजह से। मेरे मन दुखी होता है जब मैं किसी पशु को नाली में अपनी प्यास बुझाते देखते है या प्लास्टिक की पन्नी खाते देखते है। क्यों हम उन पर अत्याचार कर रहे है। क्यों हमारी आंखें नही खुलती है। शायद हम ज़्यादा समझदार हो गए है। देख कर चीजों को नही देखते है। जब हम कॉलेज में थे तो मैं कुत्तो को बिस्कुट खिलते थे। अगर हम अपने साथ इन बेजुबानो की कुछ फिकर करें तो क्या हर्ज है।
कुछ सोचा न था पर सबकी याद ले चले
तुम तक पहुच कर तेरा अहसास ले चले
पता नही आज पहले पहले लिखना शुरू किया । वैसे हमे कुछ आता नही है पर अपने आस पास देखते है तो लगता है की लोग भी कुछ नही जानते। सब अपनी दुनिया में मस्त और व्यस्त है। सबको जो काम दिया गया है वही तक उनकी लाइफ सिमट गई है। लोग कितने बदल रहे है आश्चर्य की बात है की यह बदलाव कितनी तेज़ी से हो रहा है। अब हम इतने समझदार हो गए है की ख़ुद को नही पहचान नही रहे है। इसी तेज़ी में हम बदल रहे है सब चीजों को छोड़ कर।