ज़िन्दगी इतनी तेज़ दौड़ी की हम पिछड़ गए,आँखों से झलका दरिया और गले से सागर निगल गए,ह्रदय का तूफ़ान इतना जोर से उठा
कि भीड़ में हम तनहा हो गए,लगा लिया है हमने अपने अपनों का मेला
बस हम सिर्फ अपने खून को भूल गए,
रिश्तों की चादर बिछा कर वीरनों में सो गए,
कहते है कि वक़्त नही है हमारे पास किसी से मिलने का,यही कहते हुए न जाने कितना वक़्त बर्बाद कर गए,
नही लगता दिल अब इस दुनिया में ,
आओ यारों अब अपने घर चलें.......