दर्द का रास्ता छोड़ कर मंजिलों से हमने कहा थोडा दूर चली जाये, रास्ता कम लगता है हमारे पैरों को चलने के लिए...

Sunday, January 31, 2010

एक लड़की...साहसी होती है तभी तो....


एक लड़की सुनहरी परी बन कर दुनिया में आती है,

गुडिया-गुड्डे, रसोई-बर्तन से अपनी सहेलियों संग खेलती है,

एक दिन नन्ही से जान को अहसास होता है कि वो 'लड़की' है,

बस तभी से वह डरने लगती है,

उसको डर है कोई उसे छू न ले,

उसको डर है घूरती चुभती आँखों से ,

हर तरफ से खुद को बचाने की जंग लडती है,

घर की चहारदीवारी में ही खुद को सुरक्षित पाती है,

अपनी भावनाओ को दीवारों पर सजाती है,

बाहर निकल कर हवस भरी नज़रों को दुत्कारती है,

नज़रों के पीछे छिपे खंजर से ज़ख़्मी मन को सहलाती है,

'दुनिया में हर कोई बुरा नही है' यही खुद को रोज़ समझाती है,

वर्षों से संभाले दिल को एक अजनबी से लगाती है,

जल्द ही उसको अहसास होता है कि 'वो' नही था उसके विश्वास का हक़दार,

यही सोच कर ज़िन्दगी भर पछताती है,

आंसू उसकी कमजोरी नही लड़की का गुण है,

आंसूओ को धोखा खाने पर बहाती है,
रोने से मन हल्का होता है जानती है,

पैदा होने से लेकर मरने तक लडती ही रहती है,

उम्मीद का दामन थामे आगे ही आगे बढती जाती है।

Thursday, January 28, 2010

लेखन मानव की अद्भुत कला है आइये जाने....

मनोभावों को व्यक्त करने का सशक्त माध्यम है लेखन कार्य ...
आदि मानव ने जब समूहों में रहना प्रारंभ किया तब वे संकेतो में अपने भावों को एक दूसरों को संचारित करते थे। फिर विशिष्ट ध्वनियों से , मौखिक भाषा द्वारा अपने विचारों का सम्प्रेषण किया। रचनात्मक और विशिष्ट संकेतो ,भावों को प्रकट करने के लिए पत्थरों पर कुछ आड़ी, तिरछी रेखाओं के साथ चित्र उकेरने लगे जो कालांतर में शिलालेखों के नाम से जाने जाते है( प्राचीन काल के तमाम शिलालेख प्राप्त हुए है )। कुछ इसी तरह मौखिक भाषा ने लिखित भाषा का रूप में परिवर्तित हुई। भाषा का विकास मानव सभ्यता की अभूतपूर्व उपलब्धि है। भाषा ही मनुष्य को अन्य प्राणियों से अलग करती है और जिसको भाषा रुपी पुरस्कार प्राप्त है । कुछ विद्वानों का मानना है कि भाषा का विकास स्वतः ही हुआ है मनुष्य की ज़रूरत के हिसाब से । संस्कृत भाषा दुनिया सबसे प्राचीन भाषा कही जाती है । भाषा का सफ़र शिलालेखों से ई भाषा (e-language fax,email,blog,web librery,e books) तक , अभी आगे जारी है। (भाषा का तात्पर्य पढने ,लिखने और बोलने(read,write,speech) से है )कहने का तात्पर्य है की भाषा का मानव सभ्यता विकास में महान योगदान रहा है और आगे भी रहेगा।
इसीलिए आज मन कर रहा है कि अच्छे लेखन (good writing) के बारे में बात कि जाये। मन कि बातों को कागज़ या किताबों में उकेरने से पहले लेखक मन में लम्बा विमर्श करते है या फिर झट से जो विचार मन में आया लिख डाला । लेखन कला बड़ी सुन्दर विधा है भाषा को परिष्कृत, चिर स्थाई, सम्पूर्ण और मन के भावों को रचनात्मक ढंग से कहने के लिए। लेखनी से निकली स्याही से न जाने कितनी क्रांतियाँ हुई । जनसंचार बढ़ा । लेखन कला से निकले अविस्मरनीय ग्रन्थ , रचनाये, महाकाव्य का पान आज हम कर रहे है।
आज सूचना प्रौधौगिकी के युग में जहाँ कंप्यूटर ने अपना वर्चस्व हर जगह बना लिया है पर लेखनी का जादू आज भी सिर चढ़ा कर बोलता है । किताबों और न्यूज़ पेपर का क्रेज़ आज भी लोगो में बरक़रार है। हिंदी में कबीर , सूर , तुलसी ,मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा , धर्मवीर भारती ,भगवती शरण वर्मा , सूर्यकांत त्रिपाठी निराला , सुमित्रानंदन पन्त आदि ना जाने कितने लेखक है जो सिर्फ अपनी लेखनी के जरिये आज भी हमारे बीच मौजूद है।
समय के साथ आज लेखन कि उत्कृष्टता में कमी आई है। लेखन की भाषा में आम बोलचाल की भाषा, शब्दों का प्रयोग होने लगा है। लेखन की शैली में तमाम बदलाव आये है। हम यहाँ लेखन की कमी बताने नही जा रहे है बल्कि लेखन कला को और सुन्दर ,उत्कृष्ट कैसे बनाये ये बताने की कोशिश कर रहे है।
अच्छा लेखन वही होता है जो बिना किसी कठिनाई के समझा जा सके ,मतलब सीधा ,सटीक और धाराप्रवाह । सबसे पहले अच्छा लेखक बनने के लिए अच्छा पाठक होना चाहिए। अब आप पूछेंगे कि क्या पढ़े ? तो आपको बता दें कि आप पढना शुरू कीजिये खुद ही जान जायेंगे कि क्या पढ़ें । क्योकि पढने ( reading interest) की रूचि अलग अलग होती है । कोई साहित्य में, कोई कहानी में , कोई उपन्यास में ,कोई काव्य में, हम सबकी पसंद अलग होती है। क्या आपको पता है कि ऐसा कोई नही है जो रोज़ कुछ न कुछ पढता ना हो। वस्तुतः आप जाने -अनजाने में एक नियमित पाठक है। चाहे सुबह न्यूज़ पेपर पढ़ते हो , मैगजीन के पन्ने पलट ले या फिर कोर्स कि किताबें पढ़ते हो। बस अब आपको ज़रूरत है अपनी इस आदत को रचनात्मक और नियमित रूप से करने की है। आप इसके लिए किसी लाइबरेरी का चुनाव कर सकते है। नियमित रूप से पुस्तकालय जा कर आप किसी कहानीकार ,उपन्यासकार , निबंधकार या जो पसंद हो पढ़ सकते है । हिंदी साहित्य में आप तुलसीदास की 'रामचरित मानस' ,धर्मवीर भारती की 'गुनाहों का देवता' पढ़ कर रुचि विकसित कर सकते है इनके साहित्य को आत्मसात करने के बाद आप पाएंगे कि स्वयं ही आपकी सोच और कल्पना में अभूतपूर्व बदलाव आ गया है। एक बार पढने की रुचि बन जाने पर आप लेखन के विशाल समुद्र में गोते लगा सकते है। (आप अपनी पसंद के लेखक को पढ़ सकते है हमने तो उपर्युक्त लेखकों को उदाहरण के लिए बताया है। )
आप कुछ भी पढ़ सकते है बस आपको समझना है कि कैसे लेखक ने अपने भाव को व्यक्त किया है।कलम के जादू को पहचानना है उनके लेखन में । शब्दों , उपमाओ , विशेषणों से वाक्यों की रचना कैसे की है यह समझना है।
आप सब को पता है कि लेखन कार्य के लिए धैर्य , कड़ी मेहनत और समझ कि पाठक क्या चाहता है(understanding of what your reader need)। आज आपको संक्षेप में बताते है कि अच्छे लेखन में क्या ज़रूरी है।
१- लेखन समझने में आसान, छोटे वाक्यों के साथ to the point होना चाहिए ।(clear and concise)
२- कम शब्दों में पूरी बात ।(minimum number of words)
३- सुन्दरता के साथ सौम्यता का मिश्रण होना चाहिए।( good writing is modest)

आज के लिए इतना ही फिर मिलेंगे इसके विस्तार के लिए....ज्योति

Tuesday, January 26, 2010

मीडिया का बदलता स्वरुप और हम ....ज्योति वर्मा

मीडिया और आम आदमी का क्या रिश्ता है?
हम हमेशा से यही सोचते रहे है की हमको जागरूक और ज़िम्मेदार नागरिक बनाने के लिए सम सम्यायिक जानकारी होनी चाहिय ,इसीलिए मीडिया इस कार्य के लिए उपयुक्त साधन है। स्वतंत्रता से पहले मीडिया आज़ादी के लिए लड़ने का साधन थी , अब वही मीडिया infomedia, infotainment media,new media के रूप में जाना जाता है। सूचना प्रौधोगिकी के युग में मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। digital world, cyberculture, virtual society, globlal villege आदि आधुनिक concept न्यू मीडिया की ही देन हैं। न्यू मीडिया के माध्यम से हम एक क्लिक करते ही दुनिया के किसी भी कोने की जानकारी पा सकते है।
Information Technology ने मीडिया को और शक्तिशाली बनाया , जिससे वैश्वीकरण के युग में मीडिया जनसंचार का सशक्त माध्यम बना । मीडिया के दुअरा सामाजिक ,आर्थिक, राजनितिक बदलाव और सुधारो के लिए आपर सम्भावनाये है।
मीडिया के रूप है प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रोनिक मीडिया ,वेब पोर्टल ।
सोचने की बात सिर्फ इतनी है कि वैश्वीकरण के दौर में मीडिया का भी बाजारीकरण हो गया है। और इस दौर में मीडिया की भूमिका ही बदल गयी या फिर मीडिया अपना मूल उद्देश भूल कर भटक गया है। आज मीडिया का एक वर्ग विशेष जनहित के बजाये अपना हित बनाने में लगा है। nose for news, ethics of journalism, Public interest, authenticity सब कुछ दर क़िनार करके मीडिया ने अलग राह अपना ली है
ज़िम्मेदार कौन?
मसाले दार न्यूज़ ,सनसनीखेज खबरे ,अजीबो ग़रीब करतब, स्टिंग ऑपरेशन को आज मीडिया जो दिखा , बता रहा है उसके ज़िम्मेदार हम है क्योकि कही न कही हम ऐसा ही चाहते है। याद कीजिये जब कारगिल का युद्ध हो रहा था तब उसी समय फिल्मस्टार विवेक ओबेरॉय ने एक प्रेस कांफेरेंस की थी (मामला सलमान खान का था की वो विवेक को बार बार फ़ोन कर रहे थे ) तब उस वक़्त लोगो ने विवेक की कांफेरेंस में दिलचस्पी ली थी कारगिल के युद्ध से ज्यादा। तो मीडिया वही दिखा रहा है जो जनता चाहती है।
आज दर्शक ,पाठक ,श्रौता खुद ही उदासीन हो गया है। हम सब को पता है की मीडिया को उतनी ही स्वतंत्रता प्राप्त है जितनी की एक आम आदमी ,यानी की जो भारतीय संविधान में वरणित मौलिक आधिकार का अनुच्छेद १९(१) (अ) ( अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार )बताता है। इसका उपयोग मीडिया कर रहा है पर लोग नही कर रहे है। हम न्यूज़ पेपर पढ़ कर किनारे रख देते है, खबर देख कर भूल जाते है,समाचार सुनकर आपस में कुछ चर्चा करके मन की भड़ास निकाल लेते है पर ज़रा सा भी अपने अधिकार का प्रयोग नही करते। मीडिया के महज मुठ्ठी भर लोगो ने जनसंचार का ठेका ले रखा है। सब जानते है की खबरों को दबाने के लिए कौन कौन से पासे खेले जाते है। टुच्चे छाप के रिपोर्टर पता नही क्या लिखते ?क्या छापते है वही जान सकते है । रिपोर्टर न्यूज़ पेपर को बेचने के लिए , चैनल की टी आर पी बढाने के लिए खबरों को सनसनीखेज बनाने में लगे रहते है।
सच तो ये है की पूरी मीडिया गन्दी नही है बल्कि कुछ लोगो की वजह से यहाँ कर्त्तव्य बोध की कमी , अराजकता का माहौल है। कहते भी एक मछली पूरे तालाब को गन्दा कर देती है , मीडिया में न जाने कितनी मरी मछलिया है जो इस मीडिया हब को गन्दा कर रही है, बेसिर -पैर की खबरों को हम पर थोप रहे है, लोक विमर्श को संकुचित बना रहे है।
आखिर कब तक हम सोते रहेंगे कब हम अपने अधिकारों को जानेगे और आवाज़ उठाएंगे ?
बस वक़्त आ गया है संकल्प लेने का कि अब हम भी अपने अधिकारों का प्रयोग करेंगे। मीडिया के दोस्त नही आलोचक बनकर उससे सतर्क रहेंगे।

Thursday, January 21, 2010

युवा भारत के युवा बच्चे



नन्हा मुन्ना रही हूँ देश का सिपाही हूँ, बोलो मेरे संग


जय हिंद
जय हिंद!


कल गणतंत्र दिवस है हर बच्चा कल का सिपाही है...कल देश के हर कोने में बच्चे गणतंत्र दिवस परेड में अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे। बहादुर बच्चो को कल प्रधानमंत्री जी सम्मानित करेंगे। २२ सदी के बच्चो में अपार सम्भावनाये है। बच्चो ने हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी है जैसे मीडिया, फिल्म, कला , विज्ञानं , संस्कृति, पर्यावरण , योग आदि में बराबर योगदान दे रहे ही ।


पर न जाने क्यों मन में एक चुभन सी होती ही बच्चो, युवाओ को लेकर, उनके व्यवहार, उनके तौर- तरीको से कुछ परेशानी होती हैं । हमको सोचना चाहिए युवा भारत की छवि किस दिशा में जा रही हैं ।


हम आप हर जगह यही पढ़ते , सुनते, मूवी देखते बस यही सीखते रहते है की 'बच्चो को समझो,उनकी भावनाओ को जानो, उनको वो सब करने दो जो वो चाहते है , बच्चो को इतनी छूट देनी चाहिए की अपना भविष्य खुद बना सके, और न जाने क्या क्या। आमिर खान साहब ने तो इस विषय पर जैसे p.hd कर डाली हो। उनकी हर फिल्म में कुछ न कुछ हम सिख ही लेते है कभी चाहते हुए कभी ना चाहते हुए। पर दुनिया अब पहले जैसी नहीं रह गयी है और ना हम, ना हमारे बच्चे , न युवा । अच्छा नही लगता ना ये सब पढ़ते हुए तो याद कीजिये अपना बचपन और आज अपने बच्चे के बचपन को। कितना फर्क नज़र आएगा वो आप ही महसूस करेंगे। पहले हम बच्चे माँ के दामन को २० -२५ साल तक पकडे रहते, क्या करना है क्या नही सब पूछते अगर कोई मेहमान घर आते तो घंटो उनके सामने नही जाते मारे शरम के । माँ बुलाती रहती की बेटा प्रणाम ही कर लो तो बड़ी मुन्व्वत के बाद मिलने आते । आज कल के बच्चे को देखो कितने स्मार्ट होते है उनको कुछ बताना या सिखाना नही पड़ता हर समय presentable और इतने समझदार होते है कि लगता है हर बच्चा 'अभिमनुय' हो। हर बच्चा लगता है over active , समय से पहले बड़े हो रहे है। हम तो कभी कभी सोचते है कि सन २००० के बाद के बच्चो को किसने बनाया है शायद भगवान् ने नए constructor अप्पोइंत किये है है। हर जगह बच्चे अपना कमाल दिखा रहे है । ज़रूरत से ज्यादा समझदार, समय से तेज़ , आकाश से खुली सोच , हर तरह के कामो में निपुण, सब कुछ उम्मीद से ज्यादा करते है आज के बच्चे । बड़ा अच्छा लगता है की हमारे बच्चे हमसे कितना आगे है । इन सब के प्रमुख कारण - आस पास का परिवेश, (Environment), शिक्षा (Education), अभियांत्रकी (Technology)। हमारे बच्चे अभूतपूर्व है।
सब कुछ अच्छा है पर कुछ कहीं बहुत धीरे धीरे बदल रहा है । कुछ अप्रिय तथ्य भी जुड़े है इससे - जैसे
*हम मानते है की बच्चे भगवान् का रूप, मासूम , निश्छल होते है , पर आज कल के बच्चे आपको पलक छपकते ही बेवकूफ बना देते है। खुद ही महसूस किया होगा अपने इस बात को।

*अपनी बात मनवाने के लिए बड़ी आसानी से झूठ बोलते है की आप समझ नही पाएंगे की वास्तव में एक बच्चा बोल सकता है .
*एक्टिंग बड़े अच्छे से करते हैं ।
*आप अपने आस पास युवा लड़के -लडकियों को बस नोटिस कीजिये आप समझ जायेंगे हम क्या कहना चाहते हैं ।
हमको अभी से इन सब छोटी छोटी बातो का ख्याल रखना पडेगा । इस समय हमारा देश और युवा बड़े परिवर्तन के दौर से गुज़र रहे हैं। इस परिवर्तन के दौर को सकारात्मक दिशा देना अति आवश्यक हैं।


आज के बच्चो और युवाओ को सिर्फ सुरक्षा , भरोसा , आत्मविश्वास , और प्यार की ज़रूरत ही जो उनको अच्छा भारतीय बनाने से पहले अच्छा इंसान बनायेंगे।






Wednesday, January 20, 2010

ज़िन्दगी एक सफ़र है सुहाना...मेरी नज़र से देखो...ज्योति


चलो गंगा माँ के नीर में बहते हुए कहीं चलते है.........

तो हम पहले गंगा माँ के मंदिर के दर्शन करले....












ये कश्ती वाला क्या गा रहा है ?


गंगा के तन को छूती सूरज की किरणे... दूर तक निगाह में रोशनी की नदी...




गंगा का सुन्दर किनारा... शांत और निश्छल...
मंदिर में झांकता सूरज...
ये भाई साहब हमको देख कर बोले 'मेरी भी फोटो ले लो ना !' किन्ना सोना लग रहा है!!
भूख बहुत लगी है!! तो चलते है लखनऊ नवाबो के शहर में.....
लखनऊ की जामा मस्जित का सुन्दर नज़ारा
हमारी नजरो से देखो जीविता नज़र आएगी..........
लखनऊ के सडको पर मोरनी बेफिक्र होकर घुमती है....तुम अपने दिल की धडकनों को गिन के बता!
तो चलते है इनके साथ कहीं दूर....

हम आ गए है बहते हुए जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क...हर तरफ शांति और कुदरत का संगीत, सुन्दरता के दर्शन॥

नज़र और पनाहों के खातिर ये न होते तो कुछ भी न होता॥


कोई है यहाँ पर? खोजों !!!!








दिन में उल्लू !
हमको देख कर शरमा गए और मुह फेर लिया....



तूम अपने रास्ते हम अपने...फिर कब मिलेगो? जब तुम कहोगे... गजनी ने गज राज से कहा.... सच में हमने सुना था!!!








बचना ये हसीनो लो मैं आ गया!!



कहते है जहाँ हम होते है वहां कियो नहीं दीखता है...






दूर वहां से तेरा नूर दिखता है... आ गए नैनीताल







क्या सोच रहे है? सुन्दर है ना!!




एक साथ इतने लोग सडक पे आ गए भाई हम तो फंस गए!!!!










बहुत दिन से नहाया नहीं होगा अपने तो इनसे कुछ सीखो जाके नहा लो!







रुके रुके से कदम रुक के बार बार चले....
करार दे के बेकरार होके चले...
न जाने हमको कहाँ ले जायेंगे ...


ज्ञान की देवी माँ सरस्वती के कुछ रूप जो हमने देखे आज- ज्योति

आज मुकुल सर ने कहा की हर त्यौहार को जीना चाहिए इसलिए हमने सोचा चलो आज बसंत पंचमी को जी जाये।
आज बसंत पंचमी है और माँ सरस्वती की पूजा भी बड़े धूमधाम के होती है। हमने अक्सर ध्यान दिया होगा की आजकल लोग हर चीज़ के लिए लोग अपनी आपत्ति करते रहते है कभी वन्दे मातरम को लेकर तो कभी माँ सरस्वती की वंदना के लिए। अपने शहर लखनऊ में आपको हर गली मोहल्ले में हनुमान जी, शिव जी, शनिदेव और माँ दुर्गा के मंदिर मिल जायेंगे पर ज्ञान की देवी माँ सरस्वती का मंदिर ढूढ़ना पड़ता है। आज हमने भी सोचा चलो माँ के दर्शन कर आते है पर माँ का मंदिर शहर में कहा है नहीं पता था। हमने अपनी दोस्त अर्चना से पूछा तो उसने कहा की उसको एक मंदिर पता है जो काफी पुराना है। हमने कहा चलो चलते है। हमने माँ की अद्भुत प्रतिमा देखी जो आप भी देखिये-









लखनऊ के सबसे पुराने एक मात्र माँ सरस्वती की प्रतिमा है जो दर्शनीय है।


















ये मंदिर पक्का पुल के पास शुक्ल घाट पर स्थित है। कहते है की लखनऊ विश्विधायालय के हनुमान सेतु के हनुमान जी और लखनऊ मेडिकल कॉलेज की माँ सरस्वती। जहाँ कॉलेज के ज़्यादातर छात्र-छात्राए आशीर्वाद लेने आते है। अपनी अपनी आस्था है। आज सबने माँ से विद्या, सफलता, और सुख की कामना की होगी पर क्या किसी ने इनके लिए भी कुछ माँगा होगा








ये मासूम जो सडको पर अपना बचपन बिता रहे है।









ये वफादार दोस्त जो नाली में पल रहे है।









ये गरीब जो जाड़े में बिना कपड़ो के ठुठुर रहे है।
चलो! मिल कर हम आज इनके लिए प्रार्थना करे और बसंत पंचमी को जी ले !!!!!!!!!!!!!

Monday, January 11, 2010

संवेदना नहीं है तो परवाह किसको है?











इधर कुछ दिनों से हम परेशान है हमे हर कोई संवेदनहीन लग रहा है या फिर हम ज्यादा संवेदनशील हो गए है। कहते है understanding वही होती है जहाँ

Affinity, Reality, or Communication होता है। पर क्या ये तीनो element
कही मिलते है। चारो तरफ लोग अपनी position बनाने में लगे है। जब भी किसी के हाथ में पॉवर आती तो वो निरंकुश बन जाता है। और वही पर understanding ख़त्म हो जाती है। आज जो मीडिया में लोग आये है वो सोचते है वो कुछ भी छाप देंगे लोग वही स्वीकार कर लेंगे। और अफ़सोस ये समाज के watch dog ऐसा करने में सफल भी हो गए है क्योकि हमने अपनी एक दूसरे के प्रति understanding को ख़त्म कर ली है। कोई किसी के लिए तो छोडो अपने लिए भी बोलना नहीं चाहते है

अभी ९ जनवरी को पेज १ पर headline थी "मर गई इंसानियत" 'पेट में छोड़ दी १० कैचिया ' एक वीभत्स फोटो के साथ। क्या दिखाना चाहते है ये लोग। क्या ये नहीं जानते 'Ethics of Journalism'। एक डाक्टर की गलती के लिए पूरे डाक्टर समाज को दोषी बना रहे है। आप खुद किसी रोज़ trauma center जा कर देख कर आइये की कैसे ये डाक्टर दिन रात एक करके accidental केस को देखते है। चलो सब छोड़ दो यही मानो की ऐसी फोटो देखा कर आप हमको क्या बताना चाहते हो। की कितने कर्तव्यनिष्ठ होकर आप काम कर रहे है?