दर्द का रास्ता छोड़ कर मंजिलों से हमने कहा थोडा दूर चली जाये, रास्ता कम लगता है हमारे पैरों को चलने के लिए...

Friday, October 23, 2009

सुंदर मन की सुन्दरता


नज़रे वही रूकती है जहां सुन्दरता होती है।सब कहते है की तन की सुन्दरता तो सब तो देखते है पर मन की सुन्दरता को नही देख पाते है।पर जो दीखता है वही हम देखते है। अक्सर हमने देखा है की जहाँ सुन्दरता नजर आती है हम उसको पलट कर ज़रूर देखते है चाहे वह लड़की हो, चीज़ हो, कपडा हो, फूल हो, चिडिया हो, पशु हो। बरबस ही हमरे मुंह से निकलता है की "कितना / कितनी सुंदर है!"। किसी साधारण चीज़ को देखकर हम अनदेखा कर देते है ,ज़्यादा गौर नही करते उस पर। यह मनुष्य की प्रकृति है। हम चाहे जितना गए मन की सुन्दरता तन की सुन्दरता से ज़्यादा ज़रूरी है पर क्या हम उसको अपना पा रहे है? नही.....

सारी मन की सुन्दरता धरी रह जाती जब किसी साधाराण नैन नक्श वाली लड़की को शादी के लिए लड़के वाले देखने आते है। या फिर लड़की के पिताजी उसकी फोटो लेकर लड़के के घर वालों को दिखाते है तो यही सुनने में आता है कि लड़की कम सुंदर है। बिना उसके गुणों को जाने बगैर उसको नकार देते है। लोग हमेशा ऐसी चीज़ चाहते है जिसको हम सबको दिखा सके कि "देखो कितनी सुंदर चीज़ है हमारे पास!"

आखिर कब तक मन कि सुन्दरता को दिखावे कि सुन्दरता दबाती रहेगी?

आज के युग में तो जो सुंदर है वही पसंद है। सुन्दरता आगे आगे चलती है। सुन्दरता ख़ुद बोलती है। सुन्दरता का अपना अलग आकर्षण होता है। यह सब मानते है, जानते है। पर कहते नही है।