दर्द का रास्ता छोड़ कर मंजिलों से हमने कहा थोडा दूर चली जाये, रास्ता कम लगता है हमारे पैरों को चलने के लिए...

Wednesday, September 9, 2009

कुछ सोचा न था पर सबकी याद ले चले
तुम तक पहुच कर तेरा अहसास ले चले
पता नही आज पहले पहले लिखना शुरू किया । वैसे हमे कुछ आता नही है पर अपने आस पास देखते है तो लगता है की लोग भी कुछ नही जानते। सब अपनी दुनिया में मस्त और व्यस्त है। सबको जो काम दिया गया है वही तक उनकी लाइफ सिमट गई है। लोग कितने बदल रहे है आश्चर्य की बात है की यह बदलाव कितनी तेज़ी से हो रहा है। अब हम इतने समझदार हो गए है की ख़ुद को नही पहचान नही रहे है। इसी तेज़ी में हम बदल रहे है सब चीजों को छोड़ कर।

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