दर्द का रास्ता छोड़ कर मंजिलों से हमने कहा थोडा दूर चली जाये, रास्ता कम लगता है हमारे पैरों को चलने के लिए...

Friday, September 11, 2009

तो लगता है हम और अकेले हो गए है। इतने अकेले की ज़िन्दगी बकवास लगती है। हम इतने भावुक क्यूँ है। शायद ज़िन्दगी के साथ हमने खिलवाड़ किया है उसी की सज़ा हमे मिली है। हमने हमेशा ग़लत किया सबको दुःख दिया है। अब ज़िन्दगी बोझ बन गई है जीने का मन नही करता है। हमको हमेशा एक बड़ी चीज़ की कमी खलती है जो अब शायद कभी पूरी नही हो सकती। हमे हमारे जज़बातों से नफरत सी हो गई है। वक्त के साथ मंजिल बदल गई है। अब कुछ नही चाहिए हमे सिवाय ................................

No comments:

Post a Comment