मनोभावों को व्यक्त करने का सशक्त माध्यम है लेखन कार्य ...
आदि मानव ने जब समूहों में रहना प्रारंभ किया तब वे संकेतो में अपने भावों को एक दूसरों को संचारित करते थे। फिर विशिष्ट ध्वनियों से , मौखिक भाषा द्वारा अपने विचारों का सम्प्रेषण किया। रचनात्मक और विशिष्ट संकेतो ,भावों को प्रकट करने के लिए पत्थरों पर कुछ आड़ी, तिरछी रेखाओं के साथ चित्र उकेरने लगे जो कालांतर में शिलालेखों के नाम से जाने जाते है( प्राचीन काल के तमाम शिलालेख प्राप्त हुए है )। कुछ इसी तरह मौखिक भाषा ने लिखित भाषा का रूप में परिवर्तित हुई। भाषा का विकास मानव सभ्यता की अभूतपूर्व उपलब्धि है। भाषा ही मनुष्य को अन्य प्राणियों से अलग करती है और जिसको भाषा रुपी पुरस्कार प्राप्त है । कुछ विद्वानों का मानना है कि भाषा का विकास स्वतः ही हुआ है मनुष्य की ज़रूरत के हिसाब से । संस्कृत भाषा दुनिया सबसे प्राचीन भाषा कही जाती है । भाषा का सफ़र शिलालेखों से ई भाषा (e-language fax,email,blog,web librery,e books) तक , अभी आगे जारी है। (भाषा का तात्पर्य पढने ,लिखने और बोलने(read,write,speech) से है )कहने का तात्पर्य है की भाषा का मानव सभ्यता विकास में महान योगदान रहा है और आगे भी रहेगा।
इसीलिए आज मन कर रहा है कि अच्छे लेखन (good writing) के बारे में बात कि जाये। मन कि बातों को कागज़ या किताबों में उकेरने से पहले लेखक मन में लम्बा विमर्श करते है या फिर झट से जो विचार मन में आया लिख डाला । लेखन कला बड़ी सुन्दर विधा है भाषा को परिष्कृत, चिर स्थाई, सम्पूर्ण और मन के भावों को रचनात्मक ढंग से कहने के लिए। लेखनी से निकली स्याही से न जाने कितनी क्रांतियाँ हुई । जनसंचार बढ़ा । लेखन कला से निकले अविस्मरनीय ग्रन्थ , रचनाये, महाकाव्य का पान आज हम कर रहे है।
आज सूचना प्रौधौगिकी के युग में जहाँ कंप्यूटर ने अपना वर्चस्व हर जगह बना लिया है पर लेखनी का जादू आज भी सिर चढ़ा कर बोलता है । किताबों और न्यूज़ पेपर का क्रेज़ आज भी लोगो में बरक़रार है। हिंदी में कबीर , सूर , तुलसी ,मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा , धर्मवीर भारती ,भगवती शरण वर्मा , सूर्यकांत त्रिपाठी निराला , सुमित्रानंदन पन्त आदि ना जाने कितने लेखक है जो सिर्फ अपनी लेखनी के जरिये आज भी हमारे बीच मौजूद है।
समय के साथ आज लेखन कि उत्कृष्टता में कमी आई है। लेखन की भाषा में आम बोलचाल की भाषा, शब्दों का प्रयोग होने लगा है। लेखन की शैली में तमाम बदलाव आये है। हम यहाँ लेखन की कमी बताने नही जा रहे है बल्कि लेखन कला को और सुन्दर ,उत्कृष्ट कैसे बनाये ये बताने की कोशिश कर रहे है।
अच्छा लेखन वही होता है जो बिना किसी कठिनाई के समझा जा सके ,मतलब सीधा ,सटीक और धाराप्रवाह । सबसे पहले अच्छा लेखक बनने के लिए अच्छा पाठक होना चाहिए। अब आप पूछेंगे कि क्या पढ़े ? तो आपको बता दें कि आप पढना शुरू कीजिये खुद ही जान जायेंगे कि क्या पढ़ें । क्योकि पढने ( reading interest) की रूचि अलग अलग होती है । कोई साहित्य में, कोई कहानी में , कोई उपन्यास में ,कोई काव्य में, हम सबकी पसंद अलग होती है। क्या आपको पता है कि ऐसा कोई नही है जो रोज़ कुछ न कुछ पढता ना हो। वस्तुतः आप जाने -अनजाने में एक नियमित पाठक है। चाहे सुबह न्यूज़ पेपर पढ़ते हो , मैगजीन के पन्ने पलट ले या फिर कोर्स कि किताबें पढ़ते हो। बस अब आपको ज़रूरत है अपनी इस आदत को रचनात्मक और नियमित रूप से करने की है। आप इसके लिए किसी लाइबरेरी का चुनाव कर सकते है। नियमित रूप से पुस्तकालय जा कर आप किसी कहानीकार ,उपन्यासकार , निबंधकार या जो पसंद हो पढ़ सकते है । हिंदी साहित्य में आप तुलसीदास की 'रामचरित मानस' ,धर्मवीर भारती की 'गुनाहों का देवता' पढ़ कर रुचि विकसित कर सकते है इनके साहित्य को आत्मसात करने के बाद आप पाएंगे कि स्वयं ही आपकी सोच और कल्पना में अभूतपूर्व बदलाव आ गया है। एक बार पढने की रुचि बन जाने पर आप लेखन के विशाल समुद्र में गोते लगा सकते है। (आप अपनी पसंद के लेखक को पढ़ सकते है हमने तो उपर्युक्त लेखकों को उदाहरण के लिए बताया है। )
आप कुछ भी पढ़ सकते है बस आपको समझना है कि कैसे लेखक ने अपने भाव को व्यक्त किया है।कलम के जादू को पहचानना है उनके लेखन में । शब्दों , उपमाओ , विशेषणों से वाक्यों की रचना कैसे की है यह समझना है।
आप सब को पता है कि लेखन कार्य के लिए धैर्य , कड़ी मेहनत और समझ कि पाठक क्या चाहता है(understanding of what your reader need)। आज आपको संक्षेप में बताते है कि अच्छे लेखन में क्या ज़रूरी है।
१- लेखन समझने में आसान, छोटे वाक्यों के साथ to the point होना चाहिए ।(clear and concise)
२- कम शब्दों में पूरी बात ।(minimum number of words)
३- सुन्दरता के साथ सौम्यता का मिश्रण होना चाहिए।( good writing is modest)
आज के लिए इतना ही फिर मिलेंगे इसके विस्तार के लिए....ज्योति
तेरा ग़म ही आखिर तेरे काम आया.यही है जवाब
ReplyDeletekya baat hai aaj aapke lekh se kuch naya janane ko mila jaree rakhen hum intizaar maen hain
ReplyDeleteBrevity is the soul of linguistic expression.
ReplyDeleteIf anyone really wants to bridge the gap between words and thoughts, pick the book -- On writting well'' By William Zinsser. It is available online too.
Caveman drops a thought experiment here, try if you can comply : What were the language/words which came out of the mouth frist human being on this planet? Also what would have been the joy of expressing in those prehistoric human.?
सर मानव लेखन कला का विकाश कब हुआ
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