दर्द का रास्ता छोड़ कर मंजिलों से हमने कहा थोडा दूर चली जाये, रास्ता कम लगता है हमारे पैरों को चलने के लिए...

Wednesday, February 26, 2014

कैसी विडम्बना है ?

कैसी विडम्बना है ?
कहते है न कि अगर आप गन्दगी किसी को खिलते है तो एक दिन आपको भी वही गन्दगी खानी  पड़ेगी।
आप चाहे जितने बड़े घूसखोर हो पर घूस देने कि प्रथा से बहुत ही नफरत करते होंगे।
 दोनों ही बातें कहीं न कहीं एक दूसरे से जुडी और अलग है पर इनका एकदूसरे से बड़ा गहरा सम्बन्ध है

 मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सहारा ग्रुप के ओ. पी. श्रीवास्तवा के बेटे की  दूसरी शादी में जाने का टाइम मिलता है(या वो टाइम निकाल लेते है) पर मेरे बुलाने पर वो क्यों नही आता. नही मेरे ही नही आप में से कोई भी जाये और सी. एम् को निमंत्रण देकर आइये देखिये वो आता है कि  नही. कभी नही आएगा।  उस जैसा पालतू सुग्गा सिर्फ कॉर्पोरेट घरानो की  वैभव शैली पार्टियों के आदी है. फिर पता नही जनता इनको चुन करके किसलिए भेजती है शासन में.   कैसी विडम्बना है.


ज़ाहिर सी बात है  और खुले आम सब को मालूम है कि सपा सहारा की दूकान है! अरे वही बड़े स्तर पर बात करें तो कांग्रेस् और भारतीय जनता पार्टी मिस्टर अम्बानी की  दूकान है।
 उससे बड़ी विडम्बना है कि जनता  के पास पैसे नही है खाने को खाना नही है और सरकारे अरबों खरबों के घोटाले कर रही है कहाँ से और क्यों. क्या आप नही जानते?आप सब जानते है !

विडम्बना ये है  कि मीडिया जो  देश का, लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है वो इन्ही सो कॉल्ड कॉर्पोरेट घरानो के "फालतू की न्यूज़ लिखो  दिखाओ और पैसा कमा"  टाइप की संस्था है जो जनता में सिर्फ भ्रम फ़ैलाने के सिवाय जनता के हित की बात तो करते ही नही है।


विडम्बना देखो एक तरफ सरकार को अपनी फालतू कि न्यूज़ से घेरते है वही अगले ही क्षण "हो रहा भारत निर्माण" का प्रचार दिखाते  है. अब कहेंगे कि अगर हम विज्ञापन नही दिखाएंगे तो कमाएंगे क्या। तो क्या कमाने क लिए मीडिया की दूकान चला रहे हो. सच तो यही है।  सब जानते है.
विडम्बना है कि आप झूठ  बोलने वालों को तुरंत पहचान लेते है पर देश के सच्चे सपूत को नही पहचान सके. देश का भविष्य क्या  होगा इसकी चिंता है पर देश में नेताओ की कारगुज़ारी की फिक्र किसी को नही है ये जो देश को बेच के खा रहे है सब आपकी आँखों के सामने हो रहा है पर आप है कि देश कि चिंता कर रहे है


कैसी विडम्बना है कि घर्म, जाति की  राजनीति ये राजनेता कर रहे है पर हमे बताइये हिंदू  को किसने लूटा और यादवों को किसने लूटा और तो और मुस्लिमों को किसने लूटा।
६० साल से जिस अमेठी से  कांग्रेस जीतती आयी है उसका क्या विकास हुआ है  आप खुद जाकर देखा आइये। ६० सालों में तो वहाँ दूसरा बंगलौर खड़ा हो जाता। नही नही ! लगता है सोनिया मैडम क्षेत्रवादी नही है  वो सिर्फ अपने क्षेत्र को छोड़ कर संपूर्ण भारत के विकास में लगी है.
अभी दो दिन पहले ही सोनिया मैडम का रायबरेली और अमेठी का दौरा था , उनके पहुचने के पहले ही मीडिया को बुला के खुले आम पैसे दिया गए। प्रिंट को १००० हज़ार और इलेक्ट्रॉनिक को १५०००। कहने का मतलब ये है कि पैसा फेको तमाशा देखो।


जाति और धर्मं सिर्फ एक धारणा है जो हमारी भावनाओं और परिवेश की अभिव्यक्ति है. तो क्यों हम इनको राजनीति के साथ जोड़ते है. हमारी दलित प्रिय कुमारी बहन जी मायावती जी ने दलित वर्ग के लिए क्या किया है. क्या उसको पता है कि भारत का हर दूसरा दलित गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे है. पूरे शासन काल में बहन जी ने कभी ऑफिस नही देखा था तो काम क्या क्या किया सब ने देखा ही लिया है.


सवालो के बवंडर को आप अपने अंदर मत दबाइये सिर्फ जवाब माँगिये।  नही नही रुकिए फिर विडम्बना देखिये! आप को सरे सवालों का जवाब पता है फिर किसके पास जवाब लेने चले थे?
बात एकदम सच है कि आम आदमी सोता हुआ तूफ़ान है ,जब जागेगा तो सब तहस -नहस कर देगा और राजनीति की दूकान चलाने वालों  की फाड़ देगा जैसा दिल्ली की जनता ने किया है.


जनता जनार्दन अब तो  जाग जाओ किसी को नही आप अपने आप को वोट कीजिये सब जान लो फिर किसी को चुनो


और एक कसम लीजिये कि इस बार पूरी सत्ता परिवर्तन कर के रहेंगे। हमारे परिवार के लोग या माता-पिता  किसी पार्टी से सम्बन्ध रखते है तो हम भी उसी पार्टी के उम्मीदवार को वोट करेंगे। नही खुद सोचिये और अपने साथ चार और लोगो को  जागरूक कीजिये।


नरेंद्र मोदी कि देश में जो हवा है उस हवा की  असलियत जानिए। बस गौर से उनके ही कहे शब्दो को विचारिये पता चल जायेगा की झूठ का पुलिंदा कितनी जल्दी आग पकड़ता है. वो बाँदा आज भी अम्बानी के दिया हुए हेलीकाप्टर से चलता है.
जितने नेता है देश में उन्होंने कभी कॉर्पोरेट घरानो के बारे में कुछ बोला है? नहीं  कभी नही ! सब एक  दूसरे पर ही कीचड़ उछालते है. तुमने हमे कहा हमने तुमको कहा बस बात बराबर हो गयी. भाई भाई में ये होता ही रहताहै।


सब खुली किताब की तरह हमारे सामने है फिर भी हमको चुप नही रहना है देश के लिए, अपने आप के लिए और अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए निर्णय लेना है.
देश के सच्चे सपूतों को मेरा नमन
जय हिन्द जय भारत
जय सपूत
जय दिल्ली
देश का सच्चा सपूत कौन है सोचो।
दिल्ली को  मिला है अब उत्तर प्रदेश कि बारी है। 




ज्योति वर्मा











Wednesday, February 12, 2014

रिश्ते



एक हज़ार, दो हज़ार, तीन हज़ार तो हो गया
अब अरबों में भी गिनने कि बारी है
कुछ सहज सी कुछ नरम सी
अरमानों की टोली है
कुछ लिखते कुछ बनते चलते है
ये रिश्ते भी उम्र भर सजते है
रोज़ एक नया विश्वास भरते है
ये सच है या है कोई भ्रम
तुम चाहो तो जगा देना  नींद से
वर्ना हम तो जन्मों से सोये है
जिनके पीछे हम चलते है
उनके आगे भी तो साये है
सर्द और गर्म कितने सपने
उन सपनों में नही मिलते अपने
जो है अपने वो तो मुद्दतों से पराये है.  

Friday, September 2, 2011

बस ज़िन्दगी यूँ ही गुज़र जाएगी....






न हम बदले न तुम बदले बस ज़िन्दगी बदल गयी



उस दिन भी हम अकेले थे आज भी अकेले है



बस हर रोज़ एक नया दिन नयी रात निकल गयी



आने वाला कल बड़ा बेहतर है आज से



आज से पहले, यूँ समझो कि दुखों कि बारात निकल गयी



कुछ जुबां से न कहो तो ही सही है



जुबां से निकली बात 'आई- गयी' हो गयी,



किस कमोवेश प्यार किया साकी से ,



कि सारी उम्र खाली जाम लिए गुज़र गयी ,



और फिर सबने कहा ज़िन्दगी इसी का नाम है




Saturday, July 30, 2011

बिल नही दिल की बात कीजिये......दिव्य और अनमोल

अन्ना जी की लोकपाल बिल पास करने की कोशिश,बाबा रामदेव और बालकृष्ण का फर्जीवाड़ा मधु कोड़ा की सोने की खाने और कलमाड़ी की बीमारी 2जी स्पेक्ट्रोम वाली नीरा और करुमाची सब के सब बड़े चिंता के विषय रहे है। पर इन सब पचड़ों से कहीं दूर हम अपने बेटे के साथ अपनी ही दुनिया में मस्त रहे थे । इन सब से परे एक बड़ी ही सुन्दर ज्ञान हमने प्राप्त किया है जो हम आप सब से बाँटना चाहते है। एक बार बड़ी श्रद्धा के साथ कीजिये और फिर हमे ज़रूर बताएगा कि कैसा महसूस कर रहे है




सब जानते है कि रामचरित मानस एक सुन्दर और पवित्र ग्रन्थ है। श्री रामायण में बहुत सी चौपाइयां तथा दोहे मंत्र माने गए है। केवल मन्त्रों का नियमनुसार जाप कर ले ,तो इच्छित फल की प्राप्ति हो जाती है मानस प्रेमी स्वयं अनुभव कर के देख लें। हाँ एक बात और मानस मंत्र सिद्ध करने के लिए एक दिन हवन करना पड़ता है और हवनरात में दस बजे के बाद किया जाना चाहिए। आज हम आपको बिना पैसा लिए आपको एक मंत्र बताएँगे जो हर कोई पाना चाहता है ...



मतलब लक्ष्मी और सुख प्राप्ति के लिए मंत्र-



जे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं। सुख सम्पति नाना विधि पावहिं। ।

(उत्तरकाण्ड १३)



अगर सच्चे मन से आप कोई काम करेंगे तो वो कार्य ज़रूर पूर्ण होगा। ये मंत्र सिद्ध कीजिये विश्वास और लगन से ।



ये ऐसा ज्ञान है जो दिव्य है....

जय श्री सीताराम जय श्री राम....ये नाम आस्था और विश्वास है।

Monday, September 20, 2010

ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोये.......


अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।
अति का भला न बरसना, अति का भली न धूप॥


कबीर जी ने कहा है कि कभी ज्यादा बोलना नही चाहिए । हम बिना सोचे समझे,जाने बूझे कुछ भी बोलते रहते है जो बिलकुल सही नही है। ऐसी वाणी में तेज़ नही होता है । आपकी वाणी सत्य, मधुर ,और हितकारी हो जो ज्ञान के मधुर शब्दों से युक्त हो। जहाँ जिस विषय का ज्ञान न हो वहां पर कदापि नही बोलना चाहिए। ऐसे समय पर दूसरों को सुनना ज्यादा लाभदायक होता है।
कहते भी है कि अच्छा वक्ता होने के लिए अच्छा श्रोता हो ज़रूरी है। सामने वाले की बात पूरी होने से पहले नही बोलना चाहिए। जब आपके गुरु जन बोल रहे हो तो आपको चाहिए कि आप अपना दिमाग को पूरी तरह से खाली कर ले, क्योकि खाली पात्र में ही कुछ रखा जा सकता है। उस समय तर्क वितर्क नही करना चाहिए।
जब आपके माँ पिताजी कुछ कह रहे हो तो सहज ही स्वीकार कर लेना चाहिए। क्योंकि उनकी वाणी आपके लिए अमृत समान होती है। बिना सोच समझे उनके बताये रास्ते पर चलना चाहिए।
अच्छा अब आप सोच रहे होंगे कि क्यों तुम इतनी देर से बोल रही ?
हम जानते है कि ये सब कुछ आप जानते है । हमे पता है कि आप बहुत कुछ अमल भी करते है ।

हम आपसे एक बात पूछते है कि ईश्वर तो कभी हमसे संवाद नही करते ,कभी नही बोलते परन्तु हम उसको ही सर्वशक्तिमान मानते है उनसे डरते भी है !

एक बात हमने ज़रूर महसूस की है कि शब्दों में बड़ी शक्ति होती है। दिल से कही हुई हर बात सच हो जाती है। प्राचीन काल में ऋषि, योगी जन वाणी से श्राप देते थे और मनुष्य को उसको भोगना पड़ता था। आज भी ऐसा होता है पर ज्यादा बोलने के कारन लोगो की वाणी ने अपना तप ,ओजस्विता खो दिया है। इसीलिए हमेशा सोच समझकर बोलना ही उचित है।

अब हम आपको एक बात बताये कि हमारे घर पे जो भैय्या भोजन बनाते है उनका नाम है जोशी भैय्या।हमने कई बार उनको कहते सुना है कि हमने खाना उबाल दिया है जिसको हो वो खाए। अब उनके कहे अनुसार खाने का क्या स्वाद होता होगा वो आप खुद ही जान गए होंगे!

आज लोगो में वैचारिक दोषों के साथ वाणी दोष तो चरम पर है। कुछ भी किसी के लिए बोल दिया जाता है। किसी के स्वर्ग सिधारने पर लोग कहते है कि फलाने टपक गए है। और बात बात पर ने जाने कितनी गाली देते है और कहते है कि ये तो आज का टशन है।

ज्यादा बोलना और सोचना दोनों ही ठीक नही है।
मौन रहिये सारी समस्या का हल खुद ही निकल आएगा।

जैसे पेड़ में लगे फल अगर सहज पके तो ज्यादा स्वादिष्ट और मीठे होते है वैसे ही काल ,पात्र और स्थान देख कर बात करनी चाहिए।
बोलना ही नही मौन उससे भी शक्तिशाली है।

Monday, September 13, 2010


आज कल ज़िन्दगी ने नया रुख लिया है। जैसे मेरी आत्मा को किसी चीज़ की तलाश है जो मेरे मन को शांति दे सके। आजकल लगता है ईश्वर, प्रभु ,परमेश्वर,मंत्र सब को जानना चाहते है। आध्यात्मिक मनन और चिंतन में ही सुख मिलता है। ज़िन्दगी के इस मोड़ पर शायद हम बहुत अकेले है तभी भगवान पाना चाहते है और उस परमेश्वर की सर्वस्त्र उपस्तिथि को महसूस करना चाहते है। कभी किसी ज़माने में हम पूरे समय MTV देखते थे। पर अब तो हमसे वो चैनल बर्दास्त ही नही होता। किसी तरह से दुनिया से अलग रहना चाहते है।
जब हम जन्म लेते है तो माँ-बाप के साये में पलते है पर शादी एक बड़ी घटना है जो ज़िन्दगी को नया पाठ पढाती है। इंसान कितना अकेला है ये शादी के बाद ही पता चलता है। हम कोई अपनी वेदना नही बता रहे है बल्कि एक सच्चाई बता रहे है जो हर स्त्री पुरुष शादी के बाद अनुभव करते है ।शादी कोई बुरा संस्कार नही है। यह तो एक संस्था है जो अपना उद्देश भूल चुकी है। ज़िन्दगी का हर रिश्ता समय के साथ बदला है तो यह संस्था क्योंकि अछूती रहे। इसमें कोई बुराई नही है पर अब ये अपनी वास्तविक आस्था खो कर सिर्फ एक मजबूरी और बंधन बन गयी है। आदमी जब चाहे तो स्त्री को छोड़ दे , मानसिक और शारीरिक पीड़ा दे। खैर सबके साथ ऐसा नही होता या आजकल लोगो को समझौते की आदत हो गयी है। सोचते है कि इंसान को हर चीज़ तो नही मिलती ।अच्छी बात है।

यही ज़िन्दगी का अहम् पड़ाव है जब हम ईश्वर से साक्षात्कार कर सकते है। अपनी ज़िन्दगी को बदल सकते है । यही समय है जब हम मानव से महामानव बन सकते है। महामानव बनने का अधिकार सिर्फ पुरुषों को नही मिला है। हम यहाँ पर नारीवादी धारणा जैसी बात नही कर रहे है। हम तो बस अपनी वैचारिक उन्नति की बात कर रहे है जिसमे स्त्री पता नही क्यों पीछे रह जाती है। घर परिवार में इतना व्यस्त रहती है कि अपनी आत्मिकशक्ति ,विश्वास , मनोभावों और अंतरात्मा को विकसित नही कर पाती।
जहाँ बात स्त्री की आती है वहां करुना स्वयं ही आ जाती है। प्रेम, दया, सेवा, कर्तव्यनिष्ठा, उदारता और ममता की प्रतिमूर्ति नारी है। पीर तो तब होती है जब स्त्री को सारी बुराइयों की जड़ माना जाता है। शायद कही कोई बहुत बड़ी भूल हम कर रहे है।
जब आप से आपके पति या पत्नी नाराज़ हो जाते है तो आप सोचते है कि क्या बात है जो ये हमसे नही बोल रहे है पर क्या कभी सोचा है कि ये आंगन में लगे पेड़ हमसे बात क्यों नही करते।

जब छोटे बच्चे कि हर बात माँ बिना बताये जान लेती है तो किसी बेजुबान को क्यों नही समझ पाती है।

ये सब हमारी अध्यात्मिक वैचारिक कमी के कारण होता है । अपने सुख साधन में इतने मशगूल रहते है कि तमाम ईश्वरीय चीज़ों को नज़रअंदाज़ करते जा रहे है ।



Thursday, September 2, 2010

खुद को क्यों नही जानते?


हम सबको जानते है पर खुद को नही
अपने लिए हमेशा अन्जान बने रहते है
हम क्या चाहते है ,क्या करना है ?
क्या ज़िन्दगी में पाना चाहते है ?
सच में कुछ भी नही जानते
बस दूसरों के लिए त्याग करना चाहते है,
सबको खुश करने के लिए खुद मारना चाहते है ,
क्या मिलेगा तुमको सब कुछ करके?
जाग जाओ अब मन की ऑंखें खोलो
तुम जी नही पाओगे जब तक खुद को नही जानोगे ,
अपने आपको स्वीकार करो,(accept yourself)
तभी दूसरों को अपना पाओगे
खुद को हर ग़लती के लिए माफ़ करना सीखो,(forgive yourself)
तभी दुनिया को एक सूत्र में बांध पाओगे ,
स्वयं से प्यार करो,(love yourself unconditionally)
तब जाकर दूसरों को प्रेम कर पाओगे.......